क्या कहूँ क्या जनाब होती है
जब भी वो मह्वेख़्वाब होती है
शाम सुह्बत में उसकी जैसी भी हो
वो मगर लाजवाब होती है
उम्र की बात करने वालों सुनो
ज़िन्दगी पुरशबाब होती है
वैसे पढ़ने का अब चलन न रहा
वर्ना हर शै किताब होती है
ख़ुद ही बन जाती है दवा ग़ाफ़िल
पीर जब बेहिसाब होती है
-‘ग़ाफ़िल’