Thursday, April 05, 2012

घर का न घाट का

आजकल पता नहीं क्यों लिखने से
मन कतराता है...घबराता है
फिर उलझ-उलझ कर रह जाता है
समझ नहीं आता कि
क्या लिखूँ!
कहां से शुरू करूँ और कहां ख़त्म
विचारों का झंझावात जोशोख़रोश से
उड़ा ले जा रहा है
और मैं उड़ता जा रहा हूँ
अनन्त में दिग्भ्रमित सा
न कहीं ओर, न कहीं छोर
पता नहीं है भी कोई
जो पकड़े हो इस पतंग की डोर
यह भी नहीं पता कि मैं कट गया हूँ
या उड़ाया जा रहा हूँ किसी को काटने के लिए
ख़ैर!
जो भी हो
ऊँचाइयां तो छू ही रहा हूँ
और ऊँचे गया तो लुप्त हो जाऊँगा
अनन्त की गहराइयों में
अवन्यभिमुखता पहुँचा तो देगी
अपनी धरती पर जहां हमारी जड़ है
हाँ अगर किसी खजूर पर अटका तो!
वह स्थिति भयावह होगी
फट-फट के टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा
यह दिल वाला पतंग
काल के हाथों नुचता-खुचता खो जाएगा।
घर का न घाट का
ग़ाफ़िल है बाट का
पर यही तो चालोचलन है
आवारापन का उत्कृष्टतम प्रतिफलन है
चलो यही सही
यारों का आदेश सर-आँखों पर
तो
बताओ जी! यह कैसी रही?
बेशिर-पैर, बिना तुक-ताल की कविता
कुछ आपके समझ में आयी!
या आपने अपना अनमोल वक्त और
अक्ल दोनों गंवाई!
मुआफ़ी!
आपका दिमाग़ी ज़रर हो
ऐसा मेरा इरादा भी न था
और याद रहे!
एक ख़ूबसूरत कविता सुनाने का
मेरा वादा भी न था।

48 comments:

  1. मुआफ़ी!
    आपका दिमागी ज़रर हो
    ऐसा मेरा इरादा भी न था
    पर याद रहे!
    एक ख़ूबसूरत कविता लिखने का
    मेरा वादा भी न था।

    बढ़िया रचना,बहुत सुंदर भाव प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट,....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
    MY RECENT POST...फुहार....: दो क्षणिकाऐ,...

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  2. hahaha...ye bhi khoob rahi.bahut achchi lagi rachna.

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  3. बहुत संवेदनशील रचना,बहुत ही सुंदर प्रस्तुति

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  4. आप को सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया,"राजपुरोहित समाज" आज का आगरा और एक्टिवे लाइफ
    ,एक ब्लॉग सबका ब्लॉग परिवार की तरफ से सभी को भगवन महावीर जयंती, भगवन हनुमान जयंती और गुड फ्राइडे के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ॥
    आपका

    सवाई सिंह{आगरा }

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  5. sundar post bhavbhini rachna bdhai.

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  6. एक ख़ूबसूरत कविता लिखने का
    मेरा वादा भी न था।
    ....फिर भी कितनी सुन्दर कविता!....आभार!

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  7. घर का न घाट का
    दोनों ही पाट का
    हालत ख़राब है-
    गाफिल से लाट का |
    सर पे तो बोझ है -
    कालेज का हाट का |
    करना ही पड़ेगा
    कोई बड़ा टोटका |

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  8. क्या खूब लिखा है आपने | वाह |

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  9. आपने जो भी लिखा है
    हमें तो बस वही
    समझ में आता है
    यहीं पर आपका हमारा
    एक ही खाता है
    बैंकरप्ट कभी कभी
    दिमाग से हो जाता है
    खाली दिमाग उल्लूक का सब
    कुछ जमा कर ले जाता है।

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  10. फिर भी पसंद आई....शुभकामनाएँ.

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  11. ख्याल अच्छा है..!!!

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  12. कविता का हास्य पसंद आया।
    आपने जो लिखा वह भाया
    हमने ही कौन अच्छे कवियों को पढ़ने की ठानी है
    जो मन को भा जाए उसे ही कवि और उसकी रचना को कविता मानी है।

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  13. यह भी नहीं पता कि मैं कट गया हूँ
    या उड़ाया जा रहा हूँ किसी को काटने के लिए

    मन के उद्वेलन को इस कविता मेन बखूबी पिरोया है ...

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  14. कशमकश भरी लेखनी ..

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  15. रचना में उधेड़बुन का प्रदर्शन एक स्वस्थ मानस का विविध आयामों से किया गया उत्कृष्ट अनुशीलन है ,तार्किक अध्ययन है , जो बखूबी कविता में दृश्यगत है , नैशर्गिक सृजन ,, साधुवाद मिश्र जी /

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  16. आपका दिमाग़ी ज़रर हो
    ऐसा मेरा इरादा भी न था
    और याद रहे!
    एक ख़ूबसूरत कविता लिखने का
    मेरा वादा भी न था।

    बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  17. हमें तो सर पैर सब दिखाई दिए कविता के और पसंद भी आई.

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  18. हास्य व्यंग्य विनोद से भर पूर कविता अन्दर कविता .तुकांत भी अतुकांत भी कविता भी ,अ -कविता भी .

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  19. विचारों को गिर जाने दीजिए। तभी जन्मेगी कविता।

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  20. :-)

    कविता दो बार पढ़ी............फिर समझ में आई..............
    तब जाकर मन को भी भायी .............

    सादर
    अनु

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  21. सुन्दर और आनन्दमय

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  22. प्रभावशाली प्रस्तुति...

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  23. 'बताओ जी! यह कैसी रही?'
    - खूब खरी-खरी बात समझ में आई -स्वीकारें इसकी बधाई !

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  24. और याद रहे!
    एक ख़ूबसूरत कविता लिखने का
    मेरा वादा भी न था।... :) :)
    uljhi si hi sahi par kavita to achchi hai ,har lekhk ke man ke bhav is me hai

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  25. wahi ghaifil ke dhabe kee yaad aa gayi...gajab ka mind freshner ejad kiya hai aapne..aanand aa gay..sadar badhayee ke sath

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  26. अलग तरह की कविता है ,सब के साथ अक्सर ऐसे होता है जब कुछ सूझता ही नहीं ,और कभी कभी तो कुछ लिखने को शब्द ही नहीं मिलते ,शब्द मिल जाए तो विचार सुप्त हो जाते है

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  27. और मैं उड़ता जा रहा हूँ
    अनन्त में दिग्भ्रमित सा
    न कहीं ओर, न कहीं छोर
    पता नहीं है भी कोई
    जो पकड़े हो इस पतंग की डोर
    bahut badhiyaa है . vichaar sarni ko nirbhay hokar dekhnaa .

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  28. बहुत ही सुन्दर रचना बन गयी है .....बिलकुल मन को गुदगुदा गयी कभी कभी बे मन की लिखी हुई रचना भी यादगार बन जाती है ......बधाई गाफिल जी |

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  29. क्या बात है..!

    कविता के अंदर कविता..!

    बहुत खूब, ग़ाफि़ल जी।

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  30. पढ़मे में मजेदार पर गहरे भाव लिये व जीवन-दर्शन को समझाती सुंदर मुक्तक रचना । बधाई । यदि समय अनुमति दे तो मेरे ब्लॉग शिवमेवम् सकलम् जगत पर अवश्य पधारियेगा , आपकी प्रतीक्षा व स्वागत है ।

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  31. खुद से खुद का संवाद है कविता .जीवन की उछाड़ पछाड़ ,ऊहापोह है यह कविता .

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  32. निश्चित ही सराहनीय प्रस्तुति....

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  33. वाह ! बहुत खुबसूरत रचना.
    इसको कहते है बातों ही बातों में कविताई .

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  34. वाह..क्या खूब लिखा है आपने...
    शानदार...

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  35. "एक ख़ूबसूरत कविता लिखने का
    मेरा वादा भी न था।"

    फिर भी आपने एक बेहद खूबसूरत रचना लिख ही दी...बहुत भावपूर्ण रचना..अक्सर ऐसा होता है आपने जिस मानसिक स्तिथि का चित्रण किया आजकल बिलकुल इसी दौर से मैं भी गुज़र रहा हूँ..बस फर्क ये है आपने इसी मानसिक उहापोह से एक रचना को जन्म दे डाला और मैंने.......खैर, बहुत बहुत बधाई आपको सर.

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  36. यह भी खूब रही....
    ----सुन्दर कविता, बिना तुक-ताल की ही सही, पर बेशिर-पैर की नहीं जी...

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  37. वादे न किये और निभा भी दिये
    ये अंदाज काफी निराला लगा
    काहे कतराना-घबराना-उलझाना मन
    किस जतन से पतंग को सम्हाला,लगा
    मीर गालिब मिले छोड़ा घर-घाट जब
    प्यार से जो मिला वो "निराला" लगा.
    प्रेम-धागे में बंध जो जमीं से जुड़ा
    इस धरा पे वो चंदा का हाला लगा.

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  38. सुन्दर अभिव्यक्ति.....बधाई.....

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  39. "यह भी नहीं पता कि मैं कट गया हूँ
    या उड़ाया जा रहा हूँ किसी को काटने के लिए"
    हमें तो पसंद आई :)

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