कभी ख़ुद की जानिब भी आया करो!
आईना देखकर मुस्कुराया करो!!ग़फ़लतों का पुलिंदा उठाये न उट्ठे,
उसे रफ़्ता रफ़्ता घटाया करो!
जमाने की रंगत का है लुत्फ़ लेना
तो ख़ुद की भी रंगत मिलाया करो!
वो फिर मुस्कुराई तुझे देख करके
गरेबाँ तो रफ्फ़ू कराया करो!
छुपाकर है रक्खा मेरे दिल को तुमने
मैं तड़फा बहुत हूँ नुमाया करो!
मज़े ख़ूब होते हैं नखरों में ग़ाफ़िल!
हसीनो के नख़रे उठाया करो!!
हिंदी ब्लॉगिंग की मुख्यधारा को संवारने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteशुक़्रिया डॉ. साहब
Deleteक्या बात है,
ReplyDeleteआपका अंदाज माशाल्लाह क्या कहने
बहुत सुंदर
जमाने की रंगत का है लुत्फ़ लेना
तो ख़ुद की भी रंगत मिलाया करो!
acchi gazal,en panktio se swagat hai" n aya kro to bulaya kro,roz tashbie meri banaya kro,pas akr mere mushkraya kro,roz mujhko nahk sataya kro"
ReplyDeleteशुक़्रिया अनिल भाई
Deleteछुपाकर है रक्खा मेरे दिल को तुमने
ReplyDeleteमैं तड़फा बहुत हूँ नुमाया करो!
खूबशूरत नज्म,,,,बहुत दिनों बाद आपको पढ़ने को मिला,,,,बधाई,,,,गाफिल साहब,
RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
धीरेन्द्र जी व्यस्तता के चलते ब्लॉग पर आना कम ही हो पा रहा है इसके लिए क्षमा प्रार्थी हीं...आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeletethanks kamal bhai
Delete
ReplyDeleteकभी ख़ुद की जानिब भी आया करो!
आईना देखकर मुस्कुराया करो!!
मज़े ख़ूब होते हैं नखरों में ग़ाफ़िल!
जमाने के नखरे उठाया करो!
झटकना न जुल्फें ,गिरें कई गाफ़िल
इस कदर बोझ तुम न उठाया करो !
मुराद की है पूरी उस गाफ़िल की तुमने ,
इस रहगुजर से भी तो गुजरा करो !.
तुकबन्दी मिलादी है हमने भी गाफ़िल ,
इस कदर हम पे अब यूं न बिगड़ा करो |
चलो ! इतंजार ,बा -नतीज़ा क्या ,खुश नतीज़ा रहा .बधाई भाई साहब .
sundar ghazal ...
ReplyDeleteshubhkamnayen ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (2-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
मज़े ख़ूब होते हैं नखरों में ग़ाफ़िल!
ReplyDeleteजमाने के नखरे उठाया करो!!
क्या कहने हैं,गाफिल जी.
एक शेर अर्ज़ है:-
असल क़द्रदानों पे रक्खो नज़र,
महज़ टिप्पणी पे न जाया करो.
ग़फ़लतों का पुलिंदा उठाये न उट्ठे,
ReplyDeleteउसे रफ़्ता रफ़्ता घटाया करो!...
Awesome !
.
वाह सुन्दर ग़ज़ल खूबसूरती से परिपूर्ण
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर अंदाज़ में खुबसूरत गजल..आभार..
ReplyDeleteवर्तनी की त्रुटियाँ सुधार ली जायं तो ठीक रहे ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteवाह सर जी......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल...
:-)
वाह!! क्या बात है गाफ़िल जी बहुत ही उम्दा गज़ल कह गये आप तो बहुत खूब जनाब लाजवाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़ल पढने को मिल रही है गाफिल जी ---बहुत बेहतरीन दाद कबूल कीजिये
ReplyDeleteवाह! कमाल !!उम्दा गज़ल !
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल...
सादर
अनु
जमाने के नखरे उठाया करो!!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल.
bahot sunder.....
ReplyDeleteवो फिर मुस्कुराया तुझे देख करके
ReplyDeleteगरेबाँ तो रफ्फ़ू कराया करो!
achcha laga ye sher ghafil sahab
वाह! यहाँ तो बहुत खूब महफिल जमी है! ...गज़ल भी बहुत खूब है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteवैसे भी
जमाने के नखरे
जो उठा ले जाता है
जमाना बस उसी को तो
अपने सर पर बैठाता है !
ग़फ़लतों का पुलिंदा उठाये न उट्ठे,
ReplyDeleteउसे रफ़्ता रफ़्ता घटाया करो!
...बहुत खूब!....बेहतरीन गज़ल..
बेहतरीन गज़ल ... जमाने की रंगत में रंगत मिला लें तो ज़िंदगी का लुफ़्त है .... हर शेर उम्दा
ReplyDeleteबहुत ख़ूब !!
ReplyDeleteकभी ख़ुद की जानिब भी आया करो!
ReplyDeleteआईना देखकर मुस्कुराया करो!!
आईना तोड़ देने से क्या फायदा
कभी सच का जहर पी भी जाया करो !!
मज़े ख़ूब होते हैं नखरों में ग़ाफ़िल!
जमाने के नखरे उठाया करो!!
न खरे आप हैं, न खरे हम सनम
यूँ न नखरे हमें अब दिखाया करो !!!
खूबसूरत गज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति .....
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गाफिल जी |
ReplyDeleteगफलतों के पुलिंदे को रफ्ता रफ्ता घटाया करो-
वाह बढ़िया --
कभी ख़ुद की जानिब भी आया करो!
ReplyDeleteआईना देखकर मुस्कुराया करो!!
बहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति
तुझे देख हँसतें हैं झरने यहाँ ,
ReplyDeleteउन्हें देख यूं न घबराया कर .
एक से एक हसीं हैं यहाँ ,
हर किसी पे न मर जाया कर .
ram ram bhai
रविवार, 9 सितम्बर 2012
ग्लोबल हो गई रहीमा की तपेदिक व्यथा (गतांक से आगे ...)
नखरे किए ही जाते है उठाने के लिए :)))
ReplyDeleteरस आया पढ़ कर !साधुवाद ! :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteवो फिर मुस्कुराया तुझे देख करके
ReplyDeleteगरेबाँ तो रफ्फ़ू कराया करो!
BAHUT KHOOB.......
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
वो फिर मुस्कुराया तुझे देख करके
ReplyDeleteगरेबाँ तो रफ्फ़ू कराया करो!
"WAAH SAHAB WAAAH"
बहुत बढ़िया शैर है गाफ़िल साहब !
ReplyDeleteमज़े ख़ूब होते हैं नखरों में ग़ाफ़िल!
जमाने के नखरे उठाया करो!!
रविवार, 23 सितम्बर 2012
असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना
बहुत बढ़िया रचना..!
ReplyDeleteWaah kya baat hai.
ReplyDeleteCauses of radioactive pollution & Periwinkle plant medicinal uses