Saturday, September 01, 2012

हसीनो के नख़रे उठाया करो!

कभी ख़ुद की जानिब भी आया करो!
आईना देखकर मुस्कुराया करो!!

ग़फ़लतों का पुलिंदा उठाये न उट्ठे,
उसे रफ़्ता रफ़्ता घटाया करो!

जमाने की रंगत का है लुत्फ़ लेना
तो ख़ुद की भी रंगत मिलाया करो!

वो फिर मुस्कुराई तुझे देख करके
गरेबाँ तो रफ्फ़ू कराया करो!

छुपाकर है रक्खा मेरे दिल को तुमने
मैं तड़फा बहुत हूँ नुमाया करो!

मज़े ख़ूब होते हैं नखरों में ग़ाफ़िल!
हसीनो के नख़रे उठाया करो!!

70 comments:

  1. क्या बात है,
    आपका अंदाज माशाल्लाह क्या कहने
    बहुत सुंदर


    जमाने की रंगत का है लुत्फ़ लेना
    तो ख़ुद की भी रंगत मिलाया करो!

    ReplyDelete
  2. acchi gazal,en panktio se swagat hai" n aya kro to bulaya kro,roz tashbie meri banaya kro,pas akr mere mushkraya kro,roz mujhko nahk sataya kro"

    ReplyDelete
  3. छुपाकर है रक्खा मेरे दिल को तुमने
    मैं तड़फा बहुत हूँ नुमाया करो!

    खूबशूरत नज्म,,,,बहुत दिनों बाद आपको पढ़ने को मिला,,,,बधाई,,,,गाफिल साहब,

    RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,

    ReplyDelete
    Replies
    1. धीरेन्द्र जी व्यस्तता के चलते ब्लॉग पर आना कम ही हो पा रहा है इसके लिए क्षमा प्रार्थी हीं...आभार आपका

      Delete

  4. कभी ख़ुद की जानिब भी आया करो!
    आईना देखकर मुस्कुराया करो!!


    मज़े ख़ूब होते हैं नखरों में ग़ाफ़िल!
    जमाने के नखरे उठाया करो!

    झटकना न जुल्फें ,गिरें कई गाफ़िल
    इस कदर बोझ तुम न उठाया करो !

    मुराद की है पूरी उस गाफ़िल की तुमने ,
    इस रहगुजर से भी तो गुजरा करो !.

    तुकबन्दी मिलादी है हमने भी गाफ़िल ,
    इस कदर हम पे अब यूं न बिगड़ा करो |
    चलो ! इतंजार ,बा -नतीज़ा क्या ,खुश नतीज़ा रहा .बधाई भाई साहब .

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (2-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  6. मज़े ख़ूब होते हैं नखरों में ग़ाफ़िल!
    जमाने के नखरे उठाया करो!!
    क्या कहने हैं,गाफिल जी.
    एक शेर अर्ज़ है:-
    असल क़द्रदानों पे रक्खो नज़र,
    महज़ टिप्पणी पे न जाया करो.

    ReplyDelete
  7. ग़फ़लतों का पुलिंदा उठाये न उट्ठे,
    उसे रफ़्ता रफ़्ता घटाया करो!...

    Awesome !

    .

    ReplyDelete
  8. वाह सुन्दर ग़ज़ल खूबसूरती से परिपूर्ण

    ReplyDelete
  9. वाह बहुत सुन्दर अंदाज़ में खुबसूरत गजल..आभार..

    ReplyDelete
  10. वर्तनी की त्रुटियाँ सुधार ली जायं तो ठीक रहे ।

    ReplyDelete
  11. सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  12. वाह सर जी......
    बहुत सुन्दर गजल...
    :-)

    ReplyDelete
  13. वाह!! क्या बात है गाफ़िल जी बहुत ही उम्दा गज़ल कह गये आप तो बहुत खूब जनाब लाजवाब प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  14. बहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़ल पढने को मिल रही है गाफिल जी ---बहुत बेहतरीन दाद कबूल कीजिये

    ReplyDelete
  15. वाह! कमाल !!उम्दा गज़ल !

    ReplyDelete
  16. वाह...
    बेहतरीन गज़ल...

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  17. जमाने के नखरे उठाया करो!!

    बहुत खूबसूरत गज़ल.

    ReplyDelete
  18. वो फिर मुस्कुराया तुझे देख करके
    गरेबाँ तो रफ्फ़ू कराया करो!

    achcha laga ye sher ghafil sahab

    ReplyDelete
  19. वाह! यहाँ तो बहुत खूब महफिल जमी है! ...गज़ल भी बहुत खूब है।

    ReplyDelete
  20. बहुत सुंदर !
    वैसे भी
    जमाने के नखरे
    जो उठा ले जाता है
    जमाना बस उसी को तो
    अपने सर पर बैठाता है !

    ReplyDelete
  21. ग़फ़लतों का पुलिंदा उठाये न उट्ठे,
    उसे रफ़्ता रफ़्ता घटाया करो!

    ...बहुत खूब!....बेहतरीन गज़ल..

    ReplyDelete
  22. बेहतरीन गज़ल ... जमाने की रंगत में रंगत मिला लें तो ज़िंदगी का लुफ़्त है .... हर शेर उम्दा

    ReplyDelete
  23. कभी ख़ुद की जानिब भी आया करो!
    आईना देखकर मुस्कुराया करो!!

    आईना तोड़ देने से क्या फायदा
    कभी सच का जहर पी भी जाया करो !!

    मज़े ख़ूब होते हैं नखरों में ग़ाफ़िल!
    जमाने के नखरे उठाया करो!!

    न खरे आप हैं, न खरे हम सनम
    यूँ न नखरे हमें अब दिखाया करो !!!

    खूबसूरत गज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें.....

    ReplyDelete
  24. बहुत सुन्दर प्रस्तुति .....

    ReplyDelete
  25. बहुत बढ़िया गाफिल जी |
    गफलतों के पुलिंदे को रफ्ता रफ्ता घटाया करो-
    वाह बढ़िया --

    ReplyDelete
  26. कभी ख़ुद की जानिब भी आया करो!
    आईना देखकर मुस्कुराया करो!!
    बहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति

    ReplyDelete
  27. तुझे देख हँसतें हैं झरने यहाँ ,
    उन्हें देख यूं न घबराया कर .

    एक से एक हसीं हैं यहाँ ,
    हर किसी पे न मर जाया कर .
    ram ram bhai
    रविवार, 9 सितम्बर 2012
    ग्लोबल हो गई रहीमा की तपेदिक व्यथा (गतांक से आगे ...)

    ReplyDelete
  28. नखरे किए ही जाते है उठाने के लिए :)))

    ReplyDelete
  29. रस आया पढ़ कर !साधुवाद ! :)

    ReplyDelete
  30. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  31. बेहतरीन प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  32. वो फिर मुस्कुराया तुझे देख करके
    गरेबाँ तो रफ्फ़ू कराया करो!
    BAHUT KHOOB.......

    ReplyDelete
  33. बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
    आभार !

    ReplyDelete
  34. वो फिर मुस्कुराया तुझे देख करके
    गरेबाँ तो रफ्फ़ू कराया करो!
    "WAAH SAHAB WAAAH"

    ReplyDelete
  35. बहुत बढ़िया शैर है गाफ़िल साहब !


    मज़े ख़ूब होते हैं नखरों में ग़ाफ़िल!
    जमाने के नखरे उठाया करो!!

    रविवार, 23 सितम्बर 2012
    असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना

    ReplyDelete
  36. बहुत बढ़िया रचना..!

    ReplyDelete
  37. 9E70ELaura881C8April 15, 2024 9:05 PM

    F649E
    ----
    ----
    ----
    ----
    ----
    ----
    ----
    ----
    matadorbet

    ReplyDelete