दिल से तस्वीर मिटायी न गयी
याद तेरी थी भुलायी न गयी
ग़ुफ़्तग़ू होती मज़ेदार मगर
बात बाक़द्र चलायी न गयी
खोजता आज भी रहता हूँ जिसे
वह ख़ुशी हमसे तो पायी न गयी
खा लिया मैंने क़फ़स की भी हवा
क़स्म गोया तेरी खायी न गयी
बढ़के पल्लू को पकड़ लेने की
रस्म ग़ाफ़िल से निभायी न गयी
-‘ग़ाफ़िल’
याद तेरी थी भुलायी न गयी
ग़ुफ़्तग़ू होती मज़ेदार मगर
बात बाक़द्र चलायी न गयी
खोजता आज भी रहता हूँ जिसे
वह ख़ुशी हमसे तो पायी न गयी
खा लिया मैंने क़फ़स की भी हवा
क़स्म गोया तेरी खायी न गयी
बढ़के पल्लू को पकड़ लेने की
रस्म ग़ाफ़िल से निभायी न गयी
-‘ग़ाफ़िल’
बढ़िया रचना..
ReplyDeleteAAP KI AMANAT ME JAMANAT HI NAHI
ReplyDeleteBAHUT KHOOB BAHUT KHOOB ........./
aapke sheron ne sama aisa bandha lajab
ReplyDeletechahker bhi tippadi badi likhai na gayi
behtarin..नज़्रे-आतिशे-तग़ाफ़ुले-जाना
दिल की दुनिया थी, बचायी न गयी।..
वाह ....बहुत ही उम्दा
ReplyDeleteBehatreen .
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल बेहतरीन,.....
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट के लिए--"काव्यान्जलि"--"बेटी और पेड़"--में click करे
क्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteखोजता रह गया ता’उम्र जिसे,
ReplyDeleteवह खुशी हमसे तो पायी न गयी।
बहुत खूबसूरत गजल
बहुत उम्दा.
ReplyDeleteपूछा कई बार चारागर ने मगर
ReplyDeleteचोट ऐसी थी कि दिखायी न गई
वाह!!!! गाफिल जी, क्या खूब गज़ल है
खा लिया मैंने बादे-ज़िन्दाँ भी,
कस्म गोया तेरी खायी न गयी।
भई, वाह !!!!
bahut khoobsurat ghazal.
ReplyDeleteसुन्दर.... भावो का बहुत अच्छा प्रदर्शन
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteगजल अच्छी लगी |
आशा
कोई बात नहीं ग़ाफ़िल साहब,ये नहीं,वो सही। वो नहीं,कोई और सही!
ReplyDeletewhah whah whah!
ReplyDeleteशानदार गजल....
ReplyDeleteसादर बधाई...
खोजता रह गया ता’उम्र जिसे,
ReplyDeleteवह खुशी हमसे तो पायी न गयी।
खा लिया मैंने बादे-ज़िन्दाँ भी,
कस्म गोया तेरी खायी न गयी।
...बहुत ख़ूब..उम्दा रचना..
उम्दा गजल..
ReplyDeleteनज़्रे-आतिशे-तग़ाफ़ुले-जाना
ReplyDeleteदिल की दुनिया थी, बचायी न गयी।
बढ़के पल्लू को थाम लेने की,
रस्म ग़ाफ़िल से निभायी न गयी।।
वाह गाफिल जी , एक बेहतरीन प्रस्तुति के लिए ....आभार | मै तो सिर्फ इतना कहना चाहूँगा -
गाफिल ग़ज़ल की शक्ल में क्या खूब तजुर्बा है |
जज्बातेजिगर गुफ्तगुं , तुझसे तो छिपाई ना गयी ||
khojta rah gaya ti umra jise
ReplyDeletewoh khushi hum se paie na gaee
Badh ka paloo ko tham lene ki
rasm gaphil se nibhaie na gaee
KAMAL KA LIKHA HAI -BADHAIE
sundar rachna :)
ReplyDeleteबहुत खूब.....
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल...
वाह क्या बात है. दर्द में सनी एक जबरदस्त ग़ज़ल.
ReplyDeleteखा लिया मैंने बादे-ज़िन्दाँ भी,
ReplyDeleteकस्म गोया तेरी खायी न गयी।.....वाह क्या बात है.....
खा लिया मैंने बादे-ज़िन्दाँ भी,
ReplyDeleteकस्म गोया तेरी खायी न गयी। Bahut Khoob Behtarin rachna.
नज़्रे-आतिशे-तग़ाफ़ुले-जाना
ReplyDeleteदिल की दुनिया थी, बचायी न गयी।
नज़्रे-आतिशे-तग़ाफ़ुले-जाना
ReplyDeleteदिल की दुनिया थी, बचायी न गयी।
बहुत खूब शबाब आरहा है शायर की शायरी में .
आपका अंदाजेबयाँ निराला है सर जी
ReplyDeleteखोजता रह गया ता’उम्र जिसे,
ReplyDeleteवह खुशी हमसे तो पायी न गयी
...बहुत खूब! हरेक शेर बहुत उम्दा...
बहुत खूब
ReplyDeleteखोजता रह गया ता’उम्र जिसे,
ReplyDeleteवह खुशी हमसे तो पायी न गयी
बाह ..मन कोछूती सुन्दर रचना
vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....
ak khoob soorat ghazal pr punh abhar .... mere nye post pr swagat hai.
ReplyDeleteबहुत सुंदर....नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब
ReplyDeleteनववर्ष की अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
आपका पोस्ट बहुत ही अच्छा लगा .। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाए ।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति,.....
ReplyDeleteनया साल सुखद एवं मंगलमय हो,....
मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--
नववर्ष की शुभकामनाएँ लीजिए।
ReplyDeleteबढ़के पल्लू को थाम लेने की,
ReplyDeleteरस्म ग़ाफ़िल से निभायी न गयी।।
बहुत ख़ूब! क्या बात कही है!!
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं!
बढ़के पल्लू को थाम लेने की,
ReplyDeleteरस्म गाफ़िल से निभायी न गयी
बेहतरीन, बेहतरीन।
शुभ नववर्ष।
नए वर्ष की हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteखोजता रह गया ता’उम्र जिसे,
ReplyDeleteवह खुशी हमसे तो पायी न गयी।
नव वर्ष मुबारक .हर सुबह हर शाम मुबारक .
खोजता रह गया ता’उम्र जिसे,
ReplyDeleteवह खुशी हमसे तो पायी न गयी।बहुत उम्दा गाफ़िल जी .......
आप को सपरिवार नव वर्ष 2012 की ढेरों शुभकामनाएं.
ReplyDeleteumda gazal..
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो !
बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ....
नव वर्ष मंगलमय हो !
ReplyDeleteआपका पेस्ट अच्छा लगा । मरे अगले पोस्ट "जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपका बेसव्री से इंतजार रहेगा । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteगोया आप की इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाइयां. यह नया साल आप की ऐसी कई खुबसूरत ग़ज़लों वाला साल हो और आप दिन-ब-दिन ज़्यादा से ज़्यादा खुशहाल हों. कृष्ण गोपाल सिन्हा,लखनऊ.
ReplyDeleteप्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।
ReplyDeleteखा लिया मैंने बादे-ज़िन्दाँ भी,
ReplyDeleteकस्म गोया तेरी खायी न गयी।
वाह ! ये शेर पढ़ कर तो ग़ालिब का शेर याद आ गया
ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
क्या कसम है तेरे मिलने की, के खा भी न सकूँ
वाह!...बहुत खूब!
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो !
ReplyDeleteबेहतरीन गजल।
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब।
बढ़के पल्लू को थाम लेने की,
ReplyDeleteरस्म ग़ाफ़िल से निभायी न गयी।।
बेहतरीन प्रस्तुति सारे शैर काबिले दाद .शुक्रिया आपकी ब्लोगिया दस्तक का .
बहुत ही खूबसूरत गज़ल गापिल साहब, एक एक शेर सुंदर है ।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत गज़ल गापिल साहब, एक एक शेर सुंदर है ।
ReplyDeletesir
ReplyDeletekya kahu ya likhun------
bas yun samjhiye ki har sher ko do -do bar padhti gai.
bahut bahut hi umda------
poonam
बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२६) मैं शामिल की गई है /आप मंच पर आइये और अपने अनमोल सन्देश देकर हमारा उत्साह बढाइये /आप हिंदी की सेवा इसी मेहनत और लगन से करते रहें यही कामना है /आभार /लिंक है
ReplyDeletehttp://www.hbfint.blogspot.com/2012/01/26-dargah-shaikh-saleem-chishti.html
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है |
ReplyDeleteमेरे भी ब्लॉग में पधारें |
मेरी कविता
कस्म गोया तेरी खायी न गयी।
ReplyDeleteनज़्रे-आतिशे-तग़ाफ़ुले-जाना
दिल की दुनिया थी, बचायी न गयी।
बढ़के पल्लू को थाम लेने की,
रस्म ग़ाफ़िल से निभायी न गयी।।
हर एक शेर शानदार हैं
वाह बहुत खूब.. उम्दा बधाई स्वीकार करें
मैं आपको मेरे ब्लॉग पर सादर आमन्त्रित करता हूँ.....
//ज़ीनते-गुफ़्तगू हो जाती बस
ReplyDeleteबात बाक़द्र चलायी न गयी।
खा लिया मैंने बादे-ज़िन्दाँ भी,
कस्म गोया तेरी खायी न गयी।
नज़्रे-आतिशे-तग़ाफ़ुले-जाना
दिल की दुनिया थी, बचायी न गयी।//
lajawaab ghazal sir.. lajawaab...
mazaa aa gaya..
kabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. ummeed karta hun niraash nahi karunga..
palchhin-aditya.blogspot.com
bahut sundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
गणतन्त्रदिवस की पूर्ववेला पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बहूत सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन गजल
खा लिया मैंने बादे-ज़िन्दाँ भी,
ReplyDeleteकस्म गोया तेरी खायी न गयी।
वाह...क्या अन्दाज़ है!
बढ़के पल्लू को थाम लेने की,
ReplyDeleteरस्म ग़ाफ़िल से निभायी न गयी।।
Beautiful !
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