Saturday, July 12, 2025

रुख़ से लेकिन ख़ुशी नहीं जाती

सोच यह बेतुकी नहीं जाती

के मेरी ज़िन्दगी नहीं जाती


कोई भी कैफ़ियत हो लेकिन उधर

मेरी तबियत कभी नहीं जाती


बात निकली कहीं से पर मुझतक

आयी जो भी वही नहीं जाती


मेरे किरदार पर हो कितना भी बोझ

रुख़ से लेकिन ख़ुशी नहीं जाती


गो है जी में ही मेरे ग़ाफ़िल तू

फिर भी तेरी कमी नहीं जाती


-‘ग़ाफ़िल’

Monday, October 17, 2022

ज़िन्दगी पुरशबाब होती है


क्या कहूँ क्या जनाब होती है
जब भी वो मह्वेख़्वाब होती है

शाम सुह्बत में उसकी जैसी भी हो
वो मगर लाजवाब होती है

उम्र की बात करने वालों सुनो
ज़िन्दगी पुरशबाब होती है

वैसे पढ़ने का अब चलन न रहा
वर्ना हर शै किताब होती है

ख़ुद ही बन जाती है दवा ग़ाफ़िल
पीर जब बेहिसाब होती है

-‘ग़ाफ़िल’