बलम जी लउटि चलौ वहि ठाँव,
सबसे सुन्नर, बहुत पियारा लागै आपन गाँव।
बलम जी लउटि चलौ...
बीते राति सबेरा होई, चिरइन कै कलराँव,
यहि ठौं दिनवा रतियै लागै, घाम कहाँ? कहँ छाँव?
बलम जी लउटि चलौ...
बिछुड़ि गये सब टोल-पड़ोसी, बिछुड़ि गयीं गऊ माँव,
वह नदिया, वह नदी-नहावन, वह निबरू की नाँव।
बलम जी लउटि चलौ...
मोरि मुनरकी सखिया छूटलि, केहि सँग साँझ बिताँव?
ग़ाफ़िल छोट देवरवउ छूटल, अब काको हरचाँव।
बलम जी लउटि चलौ...
-‘ग़ाफ़िल’
सबसे सुन्नर, बहुत पियारा लागै आपन गाँव।
बलम जी लउटि चलौ...
बीते राति सबेरा होई, चिरइन कै कलराँव,
यहि ठौं दिनवा रतियै लागै, घाम कहाँ? कहँ छाँव?
बलम जी लउटि चलौ...
बिछुड़ि गये सब टोल-पड़ोसी, बिछुड़ि गयीं गऊ माँव,
वह नदिया, वह नदी-नहावन, वह निबरू की नाँव।
बलम जी लउटि चलौ...
मोरि मुनरकी सखिया छूटलि, केहि सँग साँझ बिताँव?
ग़ाफ़िल छोट देवरवउ छूटल, अब काको हरचाँव।
बलम जी लउटि चलौ...
-‘ग़ाफ़िल’
अब न लौटे कब लौटोगे अब तो दुखता पांव
ReplyDeleteबहुत कठिन है शहरी जीवन, पल पल चलता दांव
...बलमुआ लौटि चलो वही ठांव।
...बहुत सुंदर कविता है गाफिल जी और आगे बढ़ाइये।
सच में गाँव में ही प्यार है ,स्नेह है ....और सजनी का प्रेम भी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति बधाई.
ReplyDeletebahut sunder shabd shaily to bahut hi pyaari hai.
ReplyDeleteबीते राति सबेरा होई, चिरइन कै कलराँव,
ReplyDeleteयहि ठौं दिनवा रतियै लागै, घाम कहाँ? कहँ छाँव?
बलमुआ लउटि चलौ...
--
बहुत सुन्दर और मधुर!
ग़ाफ़िल छोट देवरवउ छूटल ||
ReplyDeleteचिरइन कै कलराँव ||
बहुत ही प्रभावी प्रस्तुति ||
सादर अभिनन्दन ||
वाह .सुंदर आंचलिक शब्दों की कविता .....
ReplyDeletebahut badhiya shabd-chitran....abhar
ReplyDelete!वाह ...बहुत खूब
ReplyDeleteवाह ,बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........... मुझे भी गाँव की याद आ गई
ReplyDeleteबेहद सुन्दर . आंचलिक गीत भाषिक,भाव सौन्दर्य देखते ही बनता है
ReplyDeleteबलमुआ लउटि चलौ...
बीते राति सबेरा होई, चिरइन कै कलराँव,
यहि ठौं दिनवा रतियै लागै, घाम कहाँ? कहँ छाँव?
बलमुआ लउटि चलौ...
सुन्दर अभिव्यक्ति .........
ReplyDeleteकाश बलमुआ लउटि पाते अपने मन्ने...
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना....
आ अब लौट चलें ...बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteसुन्दर, कोमल अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteघाम कहाँ? कहँ छाँव?
ReplyDeleteबहुते बढ़िया!
sundar wa bhawpoorna prastuti
ReplyDeleteमोरि मुनरकी सखिया छूटलि, केहि सँग साँझ बिताँव?
ReplyDeleteग़ाफ़िल छोट देवरवउ छूटल, अब काको हरचाँव।
इस सुंदर लोकगीत की मिठास मन-हृदय में घुल गई।
क्या बात है! लोकरंग की लोकभावन परिकल्पना अपने निराले रंगों में प्रस्फुटित हो रही है ..... सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबलमुआ लउटि चलौ वहि ठाँव,
ReplyDeleteसबसे सुन्नर, बहुत पियारा बाटै आपन गाँव।
बलमुआ लउटि चलौ.
....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...