साथियों! फिर प्रस्तुत कर रहा हूँ एक पुरानी रचना, तब की जब 'बेनज़ीर' की हत्या हुई थी; शायद आप सुधीजन को रास आये-
उनके पा जाने का है ना इनका खो जाने का है।
पाकर खोना, खोकर पाना, सौदा हरजाने का है॥
तिहीदिली वो ठाट निराला दौलतख़ाने वालों का,
तहेदिली वो उजड़ा आलम इस ग़रीबख़ाने का है।
एक दफ़ा जो उनके घर पे गाज गिरी तो जग हल्ला,
किसको ग़म यूँ बेनज़ीर के हरदम मर जाने का है।
वो चाहे जो कुछ भी कह दें ब्रह्मवाक्य हो जाता है,
पूरा लफड़ा तस्लीमा के सच-सच कह जाने का है।
शाम-सहर के सूरज से भी सीख जरा ले ले ग़ाफ़िल!
उत्स है प्राची, अस्त प्रतीची बाकी भरमाने का है॥
(तिहीदिली=हृदय की रिक्तता, तहेदिली=सहृदयता)
वो चाहे जो कुछ भी कह दें ब्रह्मवाक्य हो जाता है,
ReplyDeleteपूरा लफड़ा तस्लीमा के सच-सच कह जाने का है।
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बहुत उम्दा ज़नाब!
bahut khoob.umda ghazal.
ReplyDeleteसच ये है किसी का दर्द हमें तकलीफ देता है...
ReplyDeletehttp://jan-sunwai.blogspot.com/2010/10/blog-post_4971.html
उनके पा जाने का है ना इनका खो जाने का है।
ReplyDeleteपाकर खोना, खोकर पाना, सौदा हरजाने का है॥
उम्दा पंक्तियाँ.
गीता का सार है ||
ReplyDeleteक्या कहना, आपका अंदाज ही सबसे हटकर है।
ReplyDeleteएक दफ़ा जो उनके घर पे गाज गिरी तो जग हल्ला,
किसको ग़म यूँ बेनज़ीर के हरदम मर जाने का है।
सुंदर
वो चाहे जो कुछ भी कह दें ब्रह्मवाक्य हो जाता है,
ReplyDeleteपूरा लफड़ा तस्लीमा के सच-सच कह जाने का है।
शाम-सहर के सूरज से भी सीख जरा ले ले ग़ाफ़िल!
उत्स है प्राची, अस्त प्रतीची बाकी भरमाने का है॥
खूबसूरत प्रसंग को उभारती बे -बाक प्रस्तुति .हमेशा की तरह असरदार अलफ़ाज़ .गहरे बैठते दिलो दिमाग में .
वो चाहे जो कुछ भी कह दें ब्रह्मवाक्य हो जाता है,
ReplyDeleteपूरा लफड़ा तस्लीमा के सच-सच कह जाने का है।
....सच का ही तो लफडा है.... बाकी मुखौटे तो बड़े रोचक हैं
बहुत खूब ... क्या शेर बयान किए हैं आपने अलग अंदाज़ के ...
ReplyDeleteemotional beautiful poem
ReplyDeleteवो चाहे जो कुछ भी कह दें ब्रह्मवाक्य हो जाता है,
ReplyDeleteपूरा लफड़ा तस्लीमा के सच-सच कह जाने का है।
यही तो असली बात है वाह वाह बहुत खूब .....
एक दफ़ा जो उनके घर पे गाज गिरी तो जग हल्ला,
ReplyDeleteकिसको ग़म यूँ बेनज़ीर के हरदम मर जाने का है।
बहुत सुन्दर...बहुत बारीक....
एक दफ़ा जो उनके घर पे गाज गिरी तो जग हल्ला,
ReplyDeleteकिसको ग़म यूँ बेनज़ीर के हरदम मर जाने का है।
वो चाहे जो कुछ भी कह दें ब्रह्मवाक्य हो जाता है,
पूरा लफड़ा तस्लीमा के सच-सच कह जाने का है।
बहुत दिलचस्प ....
वाह !!! बहुत खूब.
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति |उत्तम शब्द चयन |बधाई
ReplyDeleteआशा
वो चाहे जो कुछ भी कह दें ब्रह्मवाक्य हो जाता है,
ReplyDeleteपूरा लफड़ा तस्लीमा के सच-सच कह जाने का है।
सभी अपने-अपने सच की कैद में हैं।
अच्छी ग़ज़ल।
शाम-सहर के सूरज से भी सीख जरा ले ले ग़ाफ़िल!
ReplyDeleteउत्स है प्राची, अस्त प्रतीची बाकी भरमाने का है॥
..बेहतरीन। वैसे तो पूरी गज़ल अच्छी है मगर मुझे इस शेर ने सबसे अधिक प्रभावित किया।
वो चाहे जो कुछ भी कह दें ब्रह्मवाक्य हो जाता है,
ReplyDeleteपूरा लफड़ा तस्लीमा के सच-सच कह जाने का है।
तथ्यों का अच्छा समावेश... उम्दा ग़ज़ल...
सादर...
वो चाहे जो कुछ भी कह दें ब्रह्मवाक्य हो जाता है,
ReplyDeleteपूरा लफड़ा तस्लीमा के सच-सच कह जाने का है।
....सच है..