Thursday, July 01, 2021

इधर है इंसाँ जो पत्थर भी देवता कर दे (1212 1122 1212 22)

करे न इश्क़ मुझे गर वो तो मना कर दे
कोई तो होगा जो नफ़्रत सही पर आकर दे

न यह कहूँगा के वो है तो है वज़ूद मेरा
न यह कहूँगा के बाबत मेरी वो क्या कर दे

ख़ुदा की हद है के रच देगा कोई कोह-ए-संग
इधर है इंसाँ जो पत्थर भी देवता कर दे

हवा में ख़ुश्बू है जी भी है बाग़ बाग़ मेरा
मुझे क़ुबूल हैं ताने वो मुस्कुराकर दे

अजीब दौर है ग़ाफ़िल जी क्या करे कोई
न जाने कौन वफ़ादार कब ज़फ़ा कर दे

-‘ग़ाफ़िल’

6 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ जुलाई २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. करे न इश्क़
    मुझे गर वो तो
    मना कर दे
    कोई तो होगा
    जो नफ़्रत सही
    पर आकर दे
    व्वाहहहहह..
    सादर..

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  3. आदरणीय सर, अत्यंत सुंदर ग़ज़ल जो दिल को छू गयी।हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।

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  4. "ख़ुदा की हद है के रच देगा कोई कोह-ए-संग
    इधर है इंसाँ जो पत्थर भी देवता कर दे" .. बेहतरीन सोच ...

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  5. वाह!!!
    लाजवाब गजल।

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