जो हुस्नो-हरम में अज़ा देखते हो।
अरे शेख़ जन्नत कहाँ देखते हो?
निगाहों में तेरी भरम का ये आलम!
हमारी वफ़ा भी जफ़ा देखते हो।
जुनूने-मुहब्बत का ही ज़ोर है जो,
भरी भीड़ में तख़्लिया देखते हो।
भला ऐसी ख़ूबी पे क्यूँ रश्क़ न हो,
जहन्नुम में भी मर्तबा देखते हो।
अभी चश्मे-ग़ाफ़िल खुले भी नहीं हैं,
और ये पूछते हो के क्या देखते हो।
(अज़ा=दुःख, ज़फ़ा=बेवफ़ाई, तख़्लिया=एकान्त, रश्क=प्रतिस्पर्द्धा का भाव, जहन्नुम=नर्क, मर्तबा=प्रतिष्ठा, रुत्बा)
-'ग़ाफ़िल'
-'ग़ाफ़िल'
बेहतरीन...
ReplyDeleteआप मिश्र जी बहुत ही अच्छी ग़ज़लें कहते है बस आपसे एक विनम्र अनुरोध है कि आप हिंदी में ग़ज़लें कहें उर्दू के जो शब्द हमारे जीवन में रचे बसे हैं उन्हीं का प्रयोग करें |ब्लाग पर आने के लिए आशीर्वाद देने के लिए आभार |
ReplyDeleteभला ऐसी ख़ूबी पे क्यूँ रश्क़ न हो,
ReplyDeleteजहन्नुम में भी मर्तबा देखते हो।
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। नीचे उर्दू के शब्दों के मानी दे देने से कई नए शब्द भी सीखने को मिलते हैं।
जुनूने-मुहब्बत का ही ज़ोर है जो,
ReplyDeleteभरी भीड़ में तख़्लिया देखते हो।
बेहतरीन| और मर्तबा वाला भी अलग हट के टाइप है| बहुत बहुत बधाई|
बेहतरीन ग़ज़ल , आभार
ReplyDeleteनिगाहों में तेरी भरम का ये आलम!
ReplyDeleteहमारी वफ़ा भी जफ़ा देखते हो।
बहुत खूब गाफ़िल जी .......
बेहतरीन ग़ज़ल है....
behtreen gazal...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबधाई ||
जुनूने-मुहब्बत का ही ज़ोर है जो,
ReplyDeleteभरी भीड़ में तख़्लिया देखते हो।
वाह ..क्या बात है ..खूबसूरत गज़ल
भला ऐसी ख़ूबी पे क्यूँ रश्क़ न हो,
ReplyDeleteजहन्नुम में भी मर्तबा देखते हो।... bahut badhiyaa
बहुत सुन्दर्॥
ReplyDeleteआपकी रचना आज तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
http://tetalaa.blogspot.com/
जुनूने-मुहब्बत का ही ज़ोर है जो,
ReplyDeleteभरी भीड़ में तख़्लिया देखते हो।
भला ऐसी ख़ूबी पे क्यूँ रश्क़ न हो,
जहन्नुम में भी मर्तबा देखते हो।
waha bahut khub...bahut hi khub...........aabhar
भला ऐसी ख़ूबी पे क्यूँ रश्क़ न हो,
ReplyDeleteजहन्नुम में भी मर्तबा देखते हो।
खूबसूरत गजल.आभार.
सादर,
डोरोथी.
behtareen ghazal....thoda sa aur saral kare to vah vah!!!!!!!
ReplyDeleteजुनूने-मुहब्बत का ही ज़ोर है जो,
ReplyDeleteभरी भीड़ में तख़्लिया देखते हो।
बेहतरीन अभिव्यक्ति..... सभी पंक्तियाँ प्रभावी बन पड़ी हैं...
bahut badhiya sher hain ...
ReplyDeleteअभी चश्मे-ग़ाफ़िल खुले भी नहीं हैं,
ReplyDeleteऔर ये पूछते हो के क्या देखते हो।
बेहतरीन शेर....बेहतरीन ग़ज़ल ....
वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने!
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पूरे 36 घंटे बाद नेट पर आया हूँ!
धीरे-धीरे सबके यहाँ पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ!
भला ऐसी ख़ूबी पे क्यूँ रश्क़ न हो,
ReplyDeleteजहन्नुम में भी मर्तबा देखते हो।
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही सर....
सादर....
Bahut hi sundar Gazal hai.... Aabhaar!!
ReplyDeleteअभी चश्मे.ग़ाफ़िल खुले भी नहीं हैं,
ReplyDeleteऔर ये पूछते हो के क्या देखते हो।
चर्चामंच के माध्यम से एक बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने को मिली।
वाह --
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति--
लीडर यह सचमुच निडर, मिटा प्रतिष्ठा मूल।
फिरे जहन्नुम ढूंढता, फिर से खता क़ुबूल ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
उम्दा गजल !
ReplyDeleteआभार !
भला ऐसी ख़ूबी पे क्यूँ रश्क़ न हो,
ReplyDeleteजहन्नुम में भी मर्तबा देखते हो।
बहुत खूब .शब्दार्थ देकर और भी कमाल करते हो .होली मुबारक .होली का हर रंग हर ढंग मुबारक ,गुलाल अबीर चांग मुबारक .