मन का घोड़ा बाँध रखा था छोड़ा नहीं मचलने को
पानी सर से ऊपर है अब मौका नहीं सँभलने को
चाँद रहा है मिसाल हरदम रुखे-माहपारावों का
हम हैं के आमादा उसको पावों तले कुचलने को
आता भी है जाता भी है दुनिया का हर एक बसर
भरम है तेरा लगा हुआ जो यह दस्तूर बदलने को
यह तो तेरी रह का एक पड़ाव है यार! नहीं मंजिल
हुआ बहुत आराम हो अब तैयार भी आगे चलने को
चलता रहता हूँ चलना ही फ़ित्रत है अपनी गोया
चिकनी राह बुलाए ग़ाफ़िल अपनी सिम्त फिसलने को
-‘ग़ाफ़िल’
पानी सर से ऊपर है अब मौका नहीं सँभलने को
चाँद रहा है मिसाल हरदम रुखे-माहपारावों का
हम हैं के आमादा उसको पावों तले कुचलने को
आता भी है जाता भी है दुनिया का हर एक बसर
भरम है तेरा लगा हुआ जो यह दस्तूर बदलने को
यह तो तेरी रह का एक पड़ाव है यार! नहीं मंजिल
हुआ बहुत आराम हो अब तैयार भी आगे चलने को
चलता रहता हूँ चलना ही फ़ित्रत है अपनी गोया
चिकनी राह बुलाए ग़ाफ़िल अपनी सिम्त फिसलने को
-‘ग़ाफ़िल’
क्या बात है सर, बहुत सुंदर
ReplyDeleteआता भी है जाता भी है दुनिया का हर एक बसर,
भरम है तेरा लगा हुआ जो यह दस्तूर बदलने को।
बेहतरीन...आनन्द आया.
ReplyDeleteयह तो तेरी रह का एक पड़ाव है यार! नहीं मंजिल,
ReplyDeleteहुआ बहुत आराम, हो अब तैयार भी आगे चलने को।
बहुत हि बेहतरीन रचना !
यह तो तेरी रह का एक पड़ाव है यार! नहीं मंजिल,
ReplyDeleteहुआ बहुत आराम, हो अब तैयार भी आगे चलने को।
Wah ... Bahut Sunder Panktiyan...
आपके पोस्ट पर आना सार्थक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । सादर।
ReplyDeleteचाँद रहा है मिसाल हरदम रुखे-माहपारावों का,
ReplyDeleteहम हैं के आमादा उसको पावों तले कुचलने को।
बेमिसाल!
पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी, यह शे’र बहुत भाया।
मन का घोड़ा बाँध रखा था, छोड़ा नहीं मचलने को।
ReplyDeleteपानी सर से ऊपर है, अब मौका नहीं सँभलने को॥
umdaa....bahut khub
Chalna ne samjhen mazboori
ReplyDeleteChalna to bhai hai jeevan
Gar ruke thahar hi jaenge
Bolo jo asatya kaha sajjan!
चन्द्र भूषण जी,...आपकी गजल मुझे अच्छी लगी..प्रभावित होकर मै
ReplyDeleteआपका फालोवर बन गया हूँ..मेरे नए पोस्ट में स्वागत है..
आपसे अनुरोध है की -चर्चा मंच- में नए लोगो को शामिल करे ताकी लोगों में उत्साह बना रहेगा...धन्यबाद
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...आभार ।
ReplyDeleteचन्द्र भूषण जी,..आप मेरे मुख्य ब्लॉग काव्यांजली में
ReplyDeleteनई पोस्ट "वजूद" पर हार्दिक स्वागत है..प्लीज...
bahut achchha lagaa padh kar
ReplyDeleteआता भी है जाता भी है दुनिया का हर एक बसर,
ReplyDeleteभरम है तेरा लगा हुआ जो यह दस्तूर बदलने को।
... बहुत खूबसूरत गजल... हरेक शेर लाजवाब...
har ek sher khoobsurat hai.bahut achchi ghazal.
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुति!
ReplyDeleteयह तो तेरी रह का एक पड़ाव है यार! नहीं मंजिल,
ReplyDeleteहुआ बहुत आराम, हो अब तैयार भी आगे चलने को।
गज़ल दिल को छू गई.
हमेशा की तरह बेहतरीन गज़ल.
ReplyDeleteचन्द्र भूषण जी नमस्कार, यह तो तेरी राह का एक पड़ाव----------- --बहुत खूब लिखा है आपने मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteGyan Darpan
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आता भी है जाता भी है दुनिया का हर एक बसर,
ReplyDeleteभरम है तेरा लगा हुआ जो यह दस्तूर बदलने को।
bahut sunder ...
वाह,बहुत उम्दा लिखा है.
ReplyDeleteआता भी है जाता भी है दुनिया का हर एक बसर,
ReplyDeleteभरम है तेरा लगा हुआ जो यह दस्तूर बदलने को।
.ati sundar!!!
vaah vaah . hum bhi fisalne ko tayaar baithe hai.
ReplyDeleteचिकनी राहें बुलाती ही हैं...
ReplyDeleteबढ़िया गज़ल...
सादर...
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है कल शनिवार (12-11-2011)को नयी-पुरानी हलचल पर .....कृपया अवश्य पधारें और समय निकल कर अपने अमूल्य विचारों से हमें अवगत कराएँ.धन्यवाद|
ReplyDeleteचिकनी राह बुलाए गाफिल! अपनी सिम्त फिसलने को।
ReplyDelete..वाह!
यह तो तेरी रह का एक पड़ाव है यार! नहीं मंजिल,
ReplyDeleteहुआ बहुत आराम, हो अब तैयार भी आगे चलने को।
बहुत बढि़या।
चलते रहना ही जि़ंदगी है।
भरम है तेरा लगा हुआ जो यह दस्तूर बदलने को।
ReplyDeleteलगे तो हम सब हैं.
चिकनी राहे कुछ ज्यादा ही चमकती हैं.
बढिया गज़ल .
सकारात्मक व सार्थक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव !
बहुत कुछ पठनीय है यहाँ आपके ब्लॉग पर-. लगता है इस अंजुमन में आना होगा बार बार.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद !
ReplyDeleteअपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
ReplyDeleteऔचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
शानदार अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteहमेशा की तरह आज भी बेहतरीन सुंदर गजल क्या बात है..बधाई
ReplyDeleteमेरे पोस्ट पर आइये स्वागत है ....
बेहतरीन सुंदर गजल क्या बात है
ReplyDeleteयह तो तेरी रह का एक पड़ाव है यार! नहीं मंजिल,
ReplyDeleteहुआ बहुत आराम, हो अब तैयार भी आगे चलने को।
बहुत खूब, गाफिल जी, बहुत खूब।
बढि़या ग़ज़ल है।
समय पर चोट करती खूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteगिरता है चलने वाला ही, वो चलना ही फ़ित्रत है,
ReplyDeleteचिकनी राह बुलाए गाफिल! अपनी सिम्त फिसलने को।
बेहतरीन ग़ज़ल गाफ़िल साहब की हर अश आर अलग धार लिए पतवार लिए अर्थों की .
बेहतरीन ग़ज़ल गाफ़िल साहब की हर अश आर अलग धार लिए पतवार लिए अर्थों की .
ReplyDeletewaah khoobsurat ghazal.
ReplyDeleteचाँद रहा है मिसाल हरदम रुखे-माहपारावों का,
ReplyDeleteहम हैं के आमादा उसको पावों तले कुचलने को।
सुन्दर भाव रचना मन भाई इससे पहली रचना भी मन को बंधती है दोनों रचनाएं अति सुन्दर .
सुन्दर भाव रचना मन भाई इससे पहली रचना भी मन को बांधती है बींधती भी है . दोनों रचनाएं अति सुन्दर .
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti.
ReplyDeletebahut khub...sundar rachna
ReplyDeletewelcome to my blog :)
kya baat hai sir
ReplyDeleteआता भी है जाता भी है दुनिया का हर एक बसर,
भरम है तेरा लगा हुआ जो यह दस्तूर बदलने को।
यह तो तेरी रह का एक पड़ाव है यार! नहीं मंजिल,
ReplyDeleteहुआ बहुत आराम, हो अब तैयार भी आगे चलने को।
kya baat hai sir..har sher misaal hai...bahut bahut khoob
अति सुन्दर प्रस्तुति,
ReplyDeleteमन भावन गज़ल।
धन्यवाद
आनन्द विश्वास