ऐसे कुछ हैं के जो पत्थर हैं तलाशा करते
वह जो मिल जाय तो इक सर हैं तलाशा करते
हद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर
बदनुमा दाग़ वो अक्सर हैं तलाशा करते
इल्म तो है के वो हम जैसों को मिलते हैं कहाँ
हम भी पागल से उन्हें पर हैं तलाशा करते
ताल सुर बह्र से जिनका है न लेना देना
मंच ऊँचा, वे सुख़नवर हैं तलाशा करते
यार ग़ाफ़िल! क्या सभी रिंद हुए शाइर अब
चश्मे-साक़ी में जो साग़र हैं तलाशा करते
-‘ग़ाफ़िल’
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
देख ग़ाफ़िल इन्हें हैं ये भी सरपरस्ते वतन,
ReplyDeleteआह में कैसे मुक़द्दर तलाशते हैं ये।।
वाह !!! क्या बात है,
बहुत खुबशुरत गजल,...गाफिल साहब,,,,,,
हद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर,
ReplyDeleteबदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये।
खूबसूरत गज़ल ...!!
शुभकामनायें ..!
हद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर,
ReplyDeleteबदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये।
साफ़गोई से फ़ित्रतन न वास्ता इनका,
मंच ऊँचा व पा ज़बर तलाशते हैं ये।
बहुत खूबसूरत गजल
बहुत सुन्दर गजल
ReplyDeleteज़बरदस्त है ग़ज़ल.
ReplyDeleteहद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर,
ReplyDeleteबदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये।
....बहुत खूब ! बेहतरीन गज़ल..
बहुत देर कर दी प्रभु आते आते -
Deleteस्वागत है -
कई हफ़्तों बाद सुन्दर गजल के दर्शन हुवे |
आभार आपका ||
हर बार की तरह बहुत खूबसूरत गज़ल |
ReplyDeleteअर्ज किया है ........
अपने गिरेबान में झाँकने कि उन्हें फुर्सत नहीं मिलती |
फिर भी दूसरे के घर का चक्कर लगा ही आते है वो |
हद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर,
ReplyDeleteबदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये।
वाह जबरदस्त काबिले तारीफ ग़ज़ल सभी शेर बढ़िया हैं पर इस विशेष के लिए दाद कबूल कीजिये
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी, हार्दिक बधाई
ReplyDeleteवाह बहुत ही गहरे चंद्रभूषण जी । क्या बात है बहुत ही उम्दा जी बहुत ही उम्दा । सब की सब कमाल की हैं
ReplyDeleteहद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर,
ReplyDeleteबदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये।
बहुत खूब
सुन्दर गज़ल.
देख ग़ाफ़िल! हैं मह्वेख़ाब सरपरस्ते वतन,
ReplyDeleteनज़रे मज्बूर में साग़र तलाशते हैं ये...
excellent creation.
.
बहुत ही अच्छी रचना है...
ReplyDeleteसाफ़गोई से फ़ित्रतन न वास्ता इनका,
मंच ऊँचा व पा ज़बर तलाशते हैं ये।
बारहा दर-ब-दर पत्थर तलाशते हैं ये।
ReplyDeleteवह जो मिल जाय तो इक सर तलाशते हैं ये।।
क्या बात है गाफिल साहब - मज़ा आ गया
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
इनको फ़ुर्सत है कहाँ मिह्रबान होने की,
ReplyDeleteख़ुद ज़ुरूरत पे मिह्रवर तलाशते हैं ये।
wah bahut khoob .......badhai sir
बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए...हर शेर काबिलेगौर है..यह शेर तो कमाल का है.
ReplyDeleteहद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर
बदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये
गाफिल साहब ज़बरदस्त ग़ज़ल
ReplyDeleteआपको पढना वाकई सुखद अनुभव है
देख ग़ाफ़िल! हैं मह्वेख़ाब सरपरस्ते वतन,
ReplyDeleteनज़रे मज्बूर में साग़र तलाशते हैं ये।।
नज्म ऐसी जो खुद्दारी के साथ हालाते -बाख्याल वो मिशाले- जिक्र भी ......साफगोई सिफत की हक़दार भी पैरोकार भी ......मुबारका मिश्र जी /
हद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर,
ReplyDeleteबदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये।
बहुत उम्दा , जबरजस्त
बेहतरीन ग़ज़ल..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति है ...... हार्दिक बधाई
ReplyDeleteहद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर,
ReplyDeleteबदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये।
ये हमारी फितरत हो गई है कि पाक साफ़ चीज़ में भी दाग़ तलाशते रहते हैं।
पत्थर तो सर ही तलाशेंगे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
वाह खूबसूरत शब्दों से सजी गज़ल ...हर शेर लाजवाब
ReplyDeleteसाफ़गोई से फ़ित्रतन न वास्ता इनका,
ReplyDeleteमंच ऊँचा व पा ज़बर तलाशते हैं ये।
आके ब्लॉग पे आपके बार बार ,
वोकेबुलरी सुधारतें हैं हम .
कृपया 'सरापा 'भी बतलाएं .
हद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर,
ReplyDeleteबदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये।
वाह ,,,, बहुत खूबसूरत बेहतरीन गजल ,,अच्छी प्रस्तुति
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
is ghaza ko to main kai dino se padh raha hoon ..per mera comment mujhe nahi mila..phir padha to parivartan laga..aapkee ghazlon kee jitni taarif kee jaaye kam hai..baise mere liye to ye pathshala hai..sadar badhayee ke sath
ReplyDeleteहद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर,
ReplyDeleteबदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये।
खूबसूरत... उम्दा अशआर...
सादर बधाई।
वाह...बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति...
ReplyDeleteअद्भुत ग़ज़ल है ,जितनी भी तारीफ़ करूँ कम है
ReplyDeleteबारहा दर-ब-दर पत्थर तलाशते हैं ये।
ReplyDeleteवह जो मिल जाय तो इक सर तलाशते हैं ये।।
लाजवाब मत्अला।
हर शेर अपने आप में मुकम्मल।
waah! bahut khub.....
ReplyDeleteबदख़याली से सरापा हैं ख़ुद सियाह बदन,
ReplyDeleteचाँद के मिस्ल हमसफ़र तलाशते हैं ये।अगली ग़ज़ल मुद्दत से इंतजारी में है ,बढ़िया प्रस्तुति ,शानदार .. .कृपया यहाँ भी पधारें -
रविवार, 27 मई 2012
ईस्वी सन ३३ ,३ अप्रेल को लटकाया गया था ईसा मसीह
.
ram ram bhai
को सूली पर
http://veerubhai1947.blogspot.in/
तथा यहाँ भी -
चालीस साल बाद उसे इल्म हुआ वह औरत है
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in
चर्चा मंच ज़मात में बिठाने के लिए शुक्रिया .
ReplyDeleteबारहा दर-ब-दर पत्थर तलाशते हैं ये।
ReplyDeleteवह जो मिल जाय तो इक सर तलाशते हैं ये।।
हद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर,
बदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये।
बहुत खूबसूरत गजल..बहुत सुन्दर प्रस्तुति है
हैं ब्लॉग पर भी इन दिनों,पत्थर लिए कई
ReplyDeleteइसका करूं कि उसका,बस सर तलाशते हैं ये!
बारहा दर-ब-दर पत्थर तलाशते हैं ये।
ReplyDeleteवह जो मिल जाय तो इक सर तलाशते हैं ये।।व्यंग्य प्रधान पोस्ट ,शुक्रिया चर्चा प्रवेश के लिए .कृपया यहाँ भी पधारें -
.कृपया यहाँ भी पधारें -
रविवार, 10 जून 2012
टूटने की कगार पर पहुँच रहें हैं पृथ्वी के पर्यावरण औ र पारि तंत्र प्रणालियाँ Environment is at tipping point , warns UN report/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW DELHI,JUNE 8 ,2012,१९
http://veerubhai1947.blogspot
हद हुई ताज की भी मरमरी दीवारों पर,
ReplyDeleteबदनुमा दाग़ ही अक्सर तलाशते हैं ये।
wah sir lajbab .......sadar abhar bhi .
बहुत खूब!
ReplyDeleteदेख ग़ाफ़िल! हैं मह्वेख़ाब इस क़दर मयकश,
ReplyDeleteचश्मे-साक़ी में भी साग़र तलाशते हैं ये।।
bahut sundar..
bahut acchi prastuti
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन गजल..
:-)
बदख़याली से सरापा हैं ख़ुद सियाह बदन,
ReplyDeleteचाँद के मिस्ल हमसफ़र तलाशते हैं वो।
क्या बात है गाफिल साहब बहोत खूब ।
बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई
ReplyDeleteक्या बात है..
ReplyDeletekhoobsurat gazal...
ReplyDeletehttp://merisoch15.blogspot.in/
ReplyDeleteगाफिल साहब अब समझ आया गजल का मतलब जब आपने मानी लिख दिए हर लफ्ज़ के खोलके शुक्रिया .
ReplyDeletewahhhhh...Behad Umda
ReplyDeleteसाफ़गोई से फ़ित्रतन न वास्ता जिनका,
मंच ऊँचा व पा ज़बर तलाशते हैं वो।
http://ehsaasmere.blogspot.in/
शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का जो सदैव ही हमारी धरोहर हैं .
ReplyDeleteजिनको फ़ुर्सत है नहीं मिह्रबान होने की,
ReplyDeleteख़ुद ज़ुरूरत पे मिह्रवर तलाशते हैं वो।
बहुत खूब ...