Thursday, June 14, 2012

छुपा ख़ंजर नही देखा

बहुत दिन बाद आप क़द्रदानों की ख़िदमत में पेश कर रहा हूँ छोटी सी एक ताज़ा ग़ज़ल मुलाहिजा फ़रमाएं!

जो हर सर को झुका दे ख़ुद पे ऐसा दर नहीं देखा।
जो झुकने से रहा हो यूँ भी तो इक सर नहीं देखा।।

मज़ा मयख़ाने में उस रिन्द को आए तो क्यूँ आए,
जो साक़ी की नज़र में झूमता साग़र नहीं देखा।

लुटेरा क्यूँ कहें उनको चलो यूँ जी को बहला लें
वो मुफ़लिस हैं कभी आँखों से मालोज़र नहीं देखा।

क़यामत है के रुख़ भी और निगाहे-लुत्फ़ेे जाना भी,
मेरी जानिब ही हैंं गोया जिन्हें अक्सर नहीं देखा।

ज़रा सी चूक हाए बेसबब मारा गया ग़ाफ़िल
तेरी मासूम आँखों में छुपा ख़ंजर नही देखा।।

-‘ग़ाफ़िल’

______________________________________

कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.

46 comments:

  1. बहुत बढ़िया गज़ल गाफिल जी....
    सादर.

    अनु

    ReplyDelete
  2. क़त्ल होने को यहाँ तैयार बैठे हैं |
    इश्क में हम हार मनमार बैठे हैं |
    मासूम कातिल आज क्या खूब ऐंठे हैं -
    खुद के गले पर फेरते तलवार बैठे हैं ||

    ReplyDelete
  3. बहुत ही बेहतरीन गजल है सर...
    अंतिम पंक्तिया तो बहुत ही गजब है..
    सुन्दर....

    ReplyDelete
  4. सबसे अंतिम शेर तो ... गजब का है भाई

    हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा

    ReplyDelete
  5. बहुत दिनों के बाद ही सही,
    आपने मुकम्मल ग़ज़ल तो कहीं।

    ReplyDelete
  6. मज़ा मयख़ाने में उस रिन्द को आए तो क्यूँ आए?
    के साक़ी की नज़र में जो कभी साग़र नहीं देखा।
    हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा
    दोनों शेर बहुत सुन्दर हैं ,


    गाफ़िल को करे कत्ल ,वो खंजर नहीं देखा

    ReplyDelete
  7. बहुत खूब .. वाह

    ReplyDelete
  8. शानदार गजल....
    सादर।

    ReplyDelete
  9. फिर से चर्चा मंच पर, रविकर का उत्साह |

    साजे सुन्दर लिंक सब, बैठ ताकता राह ||

    --

    शुक्रवारीय चर्चा मंच

    ReplyDelete
  10. मज़ा मयख़ाने में उस रिन्द को आए तो क्यूँ आए?
    के साक़ी की नज़र में जो कभी साग़र नहीं देखा।

    बहुत खूब .... सुंदर गजल

    ReplyDelete
  11. जो हर सर को झुका दे ख़ुद पे ऐसा दर नहीं देखा।
    जो झुकने से रहा हो यूँ भी तो इक सर नहीं देखा।।

    पहुँच जाता कोई वाँ पे जहां ईसा का रुत्बा है,
    कोई बिस्तर नहीं छोड़ा के वो बिस्तर नहीं देखा।
    चंद्रभूषण मिश्र जी गाफ़िल आपकी ग़ज़लों में कुछ खास होता है जो हमेशा दिल और दिमाग के बीच रस्साकस्सी को निमंत्रण देता है।

    ReplyDelete
  12. हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा।।
    वाह,,,, बहुत सुंदर बेहतरीन गजल ,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,

    ReplyDelete
  13. gafil ji jabardast. . dil khush kar diya aapne :)

    ReplyDelete
  14. हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा।।

    बहुत सुंदर गज़ल ...!!
    शुभकामनायें

    ReplyDelete
  15. जो हर सर को झुका दे ख़ुद पे ऐसा दर नहीं देखा।
    जो झुकने से रहा हो यूँ भी तो इक सर नहीं देखा।।
    वाह ..बहुत खूब .

    ReplyDelete
  16. मज़ा मयख़ाने में उस रिन्द को आए तो क्यूँ आए?
    के साक़ी की नज़र में जो कभी साग़र नहीं देखा।

    बहुत ही उम्दा गजल पढने मिली, आभार

    ReplyDelete
  17. बहुत ही बढ़िया..

    ReplyDelete
  18. क्या बात......पंक्ति पंक्ति भा गया

    ReplyDelete
  19. मज़ा मयख़ाने में उस रिन्द को आए तो क्यूँ आए?
    के साक़ी की नज़र में जो कभी साग़र नहीं देखा।

    ...बहुत खूब....बेहतरीन गज़ल..

    ReplyDelete
  20. हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा।।

    gajab,

    shandar ghazal

    ReplyDelete
  21. bahut hee acchi ghazal...aanand aa gaya sir...padha to kai baar par internet kee wahi beemeri sath chhod dene kee comment nahi kar paa raha tha..baise main aapki ghazal padhata bhee kai baar hoon sadar badhayee ke sath

    ReplyDelete
  22. हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा।।
    शानदार ग़ज़ल !

    ReplyDelete
  23. हैं लड़ते सत्य के ही वास्ते दिन-रात झूठों से
    कहे जो सत्य ये है,झूठ ऐसा इक नहीं देखा!

    ReplyDelete
  24. हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा।।
    ..........बहुत ही बढ़िया

    ReplyDelete
  25. हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा।।

    लाजवाब....
    बड़ी बारीक सी कहन है....बहुत खूब...

    ReplyDelete
  26. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    इंडिया दर्पण
    पर भी पधारेँ।

    ReplyDelete
  27. लुटेरा क्यूँ कहें उनको चलो यूँ जी को बहला लें!
    वो मुफ़लिस हैं कभी आँखों से मालोज़र नहीं देखा।

    चले जाना, चले जाना, अजी इतनी है जल्दी क्यूँ
    सबब ये रोकने का है , अभी जी भर नहीं देखा ||

    ReplyDelete
  28. हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा।।
    हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा।।
    वाह गाफ़िल साहब बहुत दिनों के बाद पढ़ा आपको .काबिले तारीफ़ ग़ज़ल .और फिर १०-११ हजार मीटर की ऊंचाई पे उड़ते हुए टिपण्णी करने का लुत्फ़ भी अलग आ रहा है .
    अंध महासागर के ऊपर देत्रोइत और फ्रेंफार्ट के बीच कहीं .

    ReplyDelete
  29. चश्मे मासूम में गाफ़िल छुपा खंजर नहीं देखा "
    बहुत खूबसूरत पंक्ति |अच्छी रचना के लिए साधुवाद |
    आशा

    ReplyDelete
  30. मज़ा मयख़ाने में उस रिन्द को आए तो क्यूँ आए?
    के साक़ी की नज़र में जो कभी साग़र नहीं देखा।

    क़ियामत है के रुख़ भी और निगाहे-लुत्फ़ भी उनका,
    मेरी जानिब ही है गोया जिसे अक्सर नहीं देखा।

    WAH MISHR JI GAHARI TALKHIYON SE SARABOR KR DIYA .....LAJABAB GAZAL KI TAREEF ME SHABD KM PAD RAHE HAIN .

    ReplyDelete
  31. जो हर सर को झुका दे ख़ुद पे ऐसा दर नहीं देखा।
    जो झुकने से रहा हो यूँ भी तो इक सर नहीं देखा।।बढ़िया ग़ज़ल है भाईसाहब हमें आप अकसर खपाए चलतें हैं ,हम खपने को तरस्तें हैं .चर्चा मंच पर बिठाने के लिए आपका आभारी हूँ ... veerubhai1947.blogspot.com ,43,309 ,Silver Wood DR,CANTON,MI,48,188
    001-734-446-5451
    वीरुभाई .

    ReplyDelete
  32. मज़ा मयख़ाने में उस रिन्द को आए तो क्यूँ आए?
    के साक़ी की नज़र में जो कभी साग़र नहीं देखा।

    बहुत खूब...

    ReplyDelete
  33. शुक्रिया ज़नाब का चर्चा में शरीक करने के लिए .

    ReplyDelete
  34. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

    ReplyDelete
  35. आखिरी ख्याल तक आते आते मुझे तो अपना बना गये हो !

    ReplyDelete
  36. लुटेरा क्यूँ कहें उनको चलो यूँ जी को बहला लें!
    वो मुफ़लिस हैं कभी आँखों से मालोज़र नहीं देखा।

    हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा।।

    कमाल का लिखते हैं गाफिल साहब ।

    ReplyDelete
  37. बहुत सुँदर
    चश्मे मासूम में खंजर यूँ ही छुपाते हैं
    चलाते नहीं कत्ल नजर से कर जाते हैं !

    ReplyDelete
  38. "katilo ko sath le chalne ki adat ho gye, khudkashi sahil pe ki din ke ujale me,kishmat hi daga de gyee kabhi majhdhar na dekha.shaki ne kabhi mujhko n kyo pyar se dekha, edhar dekha udhar dekha samandar par bbhi dekha,jab vehad gaur se deka to khanjar es par se us par dekha, khe kya ab en bechare katilo ko,jinhe dekha sabhi ke cheharo par ek naye asar dekha........hua jab faishla kishmt ka mere khudiko katio ke sath dekha...."

    ReplyDelete
  39. काफी दिन से आपका लिखा कुछ नया नहीं पढ़ा ,आज आप आये तो याद आया ,खैरियत तो है सब ?

    ReplyDelete
  40. आप से कुछ नया प्रतीक्षित ,शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -

    ram ram bhai
    रविवार, 26 अगस्त 2012
    एक दिशा ओर को रीढ़ का अतिरिक्त झुकाव बोले तो Scoliosis
    एक दिशा ओर को रीढ़ का अतिरिक्त झुकाव बोले तो Scoliosis


    कई मर्तबा हमारी रीढ़ साइडवेज़ ज़रुरत से ज्यादा वक्रता लिए रहती है चिकित्सा शब्दावली में इसे ही कहा जाता है -Scoliosis .

    24 हड्डियों (अस्थियों )की बनी होती है हमारी रीढ़ (स्पाइन )जिन्हें vertebrae कहा जाता है .रीढ़ की हड्डी की गुर्री का एक अंश है ये vertebra जिसे कशेरुका भी कहा जाता है .रीढ़ वाले प्राणियों को कहा जाता है कशेरुकी जीव (vertebrate ).

    ये कशेरुका एक के ऊपर एक रखी होतीं हैं .रीढ़ को सामने से पीछे की ओर देखने पर वह सीधी (ऋजु रेखीय )ही दिखलाई देती है .

    बेशक रीढ़ एक दम से सीधी नहीं होतीं हैं और ऐसा होना एक दम से सामान्य बात है.नोर्मल ही समझा जाता है .लेकिन जब यही रीढ़ आढ़ी तिरछी टेढ़ी मेढ़ी ज़रुरत से ज्यादा होती है तब यह असामान्य बात है ,एक रोगात्मक स्थिति भी हो सकती है यह जिसका आपको ज़रा भी भान (इल्म )नहीं है .
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

    ReplyDelete

  41. हो चुका क़त्ल अब रोने से और धोने से क्या होगा?
    चश्मे-मासूम में ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा।।

    GREAT Expression !

    .

    ReplyDelete
  42. .

    लुटेरा क्यूँ कहें उनको चलो यूँ जी को बहला लें!
    वो मुफ़लिस हैं कभी आँखों से मालोज़र नहीं देखा।


    आदरणीय चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी
    कई दिन बाद आया हूं आपके यहां …

    अच्छी ग़ज़ल पढ़ कर आना सार्थक हुआ है …
    बहुत ख़ूब !

    आपकी लेखनी से सदैव ही ऐसे ही सुंदर भाव और विचारों से युक्त सुंदर रचनाओं का सृजन होता रहे ,
    यही कामना है …

    शुभकामनाओं सहित…

    ReplyDelete