फिर क़यामत के प्यार लिख डाला।
और फिर ऐतबार लिख डाला।।
लिखना चाहा उसे जभी दुश्मन,
न पता कैसे यार लिख डाला।
उसने क़ातिल निगाह फिर डाली,
उसको फिर ग़मगुसार लिख डाला।
याद आती न अब उसे मेरी,
मैंने तो यादगार लिख डाला।
लिखते लिखते न लिख सका कुछ तो,
तंग आ करके दार लिख डाला।
मैं हूँ ग़ाफ़िल यूँ ग़फ़लतन ये ग़ज़ल,
देखिए क़िस्तवार लिख डाला।।
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
और फिर ऐतबार लिख डाला।।
लिखना चाहा उसे जभी दुश्मन,
न पता कैसे यार लिख डाला।
उसने क़ातिल निगाह फिर डाली,
उसको फिर ग़मगुसार लिख डाला।
याद आती न अब उसे मेरी,
मैंने तो यादगार लिख डाला।
लिखते लिखते न लिख सका कुछ तो,
तंग आ करके दार लिख डाला।
मैं हूँ ग़ाफ़िल यूँ ग़फ़लतन ये ग़ज़ल,
देखिए क़िस्तवार लिख डाला।।
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
लिखना चाहा उसे जभी दुश्मन,
ReplyDeleteन पता कैसे यार लिख डाला।
वाह ...बधाई !
लिखना चाहा उसे जभी दुश्मन,
ReplyDeleteन पता कैसे यार लिख डाला।
वाह वाह !!! बहुत खूब सुंदर गजल ,,
,
RECENT POST : पाँच( दोहे )
बहुत खूब लिखा है। शुक्रिया आपकी टिपपणी का।
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteलिखना चाहा उसे जभी दुश्मन,
ReplyDeleteन पता कैसे यार लिख डाला।
क्या ख़ूबसूरत अंदाज़ है, शेर कहने का ! वाह !!
लिखते-लिखते ,,बहुत खूब लिख डाला .....
ReplyDeleteक्या बात है ,वाह !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (02.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
ReplyDeleteबहुत खूब सुंदर गजल ,,
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें और अपने विचार रखे
, मैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11
सुन्दर अभिव्यक्ति .खुबसूरत रचना ,कभी यहाँ भी पधारें।
ReplyDeleteसादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
लिखना चाहा उसे जभी दुश्मन,
ReplyDeleteन पता कैसे यार लिख डाला।
वाह!
वाह वाह बहोत खूब ।
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