Thursday, May 29, 2014

धोई-धाई सी मक्कारी

ये दुनियाबी बातें लिखना
दिन को लिखना रातें लिखना
लिखना अरमानों की डोली
कैसे मुनिया मुनमुन हो ली
धन्धा-पानी ठंढी-गर्मी
चालाकी हँसती बेशर्मी
मिलन की रातें रोज़ जुदाई
दिल की दिल से हाथापाई
दिनभर ठगना और ठगाना
वादों का मुरझा सा जाना
ग़ाफ़िल है यह दुनियादारी
धोई-धाई सी मक्कारी

5 comments:

  1. मक्कारी का लिबास साफ़-सुथरा ही दिखता है...

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  2. धोई धोई सी मक्कारी, वाह ।

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  3. एक एक शब्द मानो दिल में पसर गया हो..बहुत उम्दा...

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  4. मिलन की रातें रोज़ जुदाई
    दिल की दिल से हाथापाई
    दिनभर ठगना और ठगाना
    वादों का मुरझा सा जाना
    ग़ाफ़िल है यह दुनियादारी
    धोई-धाई सी मक्कारी
    क्या बात है !

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