अँधेरों से जो हमने दुश्मनी की क्या पता तुझको
कभी दिल को जलाकर रौशनी की क्या पता तुझको
तुझे अब क्या पता के किन थपेड़ों को सहा हमने
रहे-उल्फ़त में कैसे चाँदनी की क्या पता तुझको
-‘ग़ाफ़िल’
कभी दिल को जलाकर रौशनी की क्या पता तुझको
तुझे अब क्या पता के किन थपेड़ों को सहा हमने
रहे-उल्फ़त में कैसे चाँदनी की क्या पता तुझको
-‘ग़ाफ़िल’
वाह क्या बात है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteवाह,क्या बात है !
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