1.
राह मंज़िल की अब्र से पूछूँ
इससे बेहतर है मैं भटक जाऊँ
2.
उम्र गिनिएगा तो मौसम बेमज़ा हो जाएगा,
देखते रहिए मिज़ाज औ लुत्फ़ जी भर लीजिए।
3.
आजकल तो आईना भी पार कर जाता है हद,
मेरा चेहरा ख़ामख़ा देखो गुलाबी कर दिया।
4.
कोई तद्बीर कर फिरसे मेरी पहचान वापिस हो,
तेरा ही नाम लेकर लोग मुझको याद करते हैं।
5.
ग़ैरों की बगिया के गुड़हल में भी क्या आकर्षण है जो,
अपने आगन का गुलाब भी लगता है फीका फीका सा।
7.
क़त्ल हो जाए न सच का फिर सफ़ाई से यहाँ
हाथ रख क़स्में उठीं फिर गीता-ओ-क़ुर्आन पर
राह मंज़िल की अब्र से पूछूँ
इससे बेहतर है मैं भटक जाऊँ
2.
उम्र गिनिएगा तो मौसम बेमज़ा हो जाएगा,
देखते रहिए मिज़ाज औ लुत्फ़ जी भर लीजिए।
3.
आजकल तो आईना भी पार कर जाता है हद,
मेरा चेहरा ख़ामख़ा देखो गुलाबी कर दिया।
4.
कोई तद्बीर कर फिरसे मेरी पहचान वापिस हो,
तेरा ही नाम लेकर लोग मुझको याद करते हैं।
5.
मेरे महबूब का नाम आप मुझसे पूछते हो क्यूँ
सलीके से जो देखो आईना चेहरा दिखा देगा
6.ग़ैरों की बगिया के गुड़हल में भी क्या आकर्षण है जो,
अपने आगन का गुलाब भी लगता है फीका फीका सा।
7.
क़त्ल हो जाए न सच का फिर सफ़ाई से यहाँ
हाथ रख क़स्में उठीं फिर गीता-ओ-क़ुर्आन पर
श्री राम नवमी की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (29-03-2015) को "प्रभू पंख दे देना सुन्दर" {चर्चा - 1932} पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आजकल तो आईना भी पार कर जाता है हद,
ReplyDeleteमेरा चेहरा ख़ामख़ा देखो गुलाबी कर दिया।
बहुत ख़ूब, गाफि़ल जी ।
सभी शेर शानदार ।
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...