बताओ जी क्या क्या बनाने चले हैं
अदब के जो याँ कारख़ाने चले हैं
जो हों कानफाड़ू जँचें बस नज़र को
अब ऐसी ही ख़ूबी के गाने चले हैं
न जिनको हुनर है बजाने का ढोलक
सितम है वो हमको नचाने चले हैं
गया है बिखर टूटकर दिल हमारा
जनाब अब उसे आज़माने चले हैं
चले तो सही तीर नज़रों के उनके
भले मेरे दिल के बहाने चले हैं
नहीं रेंगता जूँ है कानों पे जिनके
सुनाने वो ग़ाफ़िल को ताने चले हैं
-‘ग़ाफ़िल’
अदब के जो याँ कारख़ाने चले हैं
जो हों कानफाड़ू जँचें बस नज़र को
अब ऐसी ही ख़ूबी के गाने चले हैं
न जिनको हुनर है बजाने का ढोलक
सितम है वो हमको नचाने चले हैं
गया है बिखर टूटकर दिल हमारा
जनाब अब उसे आज़माने चले हैं
चले तो सही तीर नज़रों के उनके
भले मेरे दिल के बहाने चले हैं
नहीं रेंगता जूँ है कानों पे जिनके
सुनाने वो ग़ाफ़िल को ताने चले हैं
-‘ग़ाफ़िल’
न जिनको हुनर है बजाने का ढोलक
ReplyDeleteसितम है वो हमको नचाने चले हैं
बहुत सुंदर गाफ़िल जी।