Tuesday, August 16, 2016

सुनाने वो ग़ाफ़िल को ताने चले हैं

बताओ जी क्या क्या बनाने चले हैं
अदब के जो याँ कारख़ाने चले हैं

जो हों कानफाड़ू जँचें बस नज़र को
अब ऐसी ही ख़ूबी के गाने चले हैं

न जिनको हुनर है बजाने का ढोलक
सितम है वो हमको नचाने चले हैं

गया है बिखर टूटकर दिल हमारा
जनाब अब उसे आज़माने चले हैं

चले तो सही तीर नज़रों के उनके
भले मेरे दिल के बहाने चले हैं

नहीं रेंगता जूँ है कानों पे जिनके
सुनाने वो ग़ाफ़िल को ताने चले हैं

-‘ग़ाफ़िल’

1 comment:

  1. न जिनको हुनर है बजाने का ढोलक
    सितम है वो हमको नचाने चले हैं

    बहुत सुंदर गाफ़िल जी।

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