होना तो चाहिए ही सलीक़ा के क्या करो
क्यूँ मैं कहूँ के आप भी ये फ़ैसला करो
मैं तो किया हूँ इश्क़ ये मर्ज़ी है आपकी
रक्खो मुझे जी दिल में के दिल से जुदा करो
रुस्वाइयों से चाहिए मुझको नहीं निजात
इतना मगर हो आप ही बाइस हुआ करो
दुनिया के रंगो आब में घुल मिल गए हैं सब
मैं क्या हूँ आप क्या हो न ये तज़्किरा करो
जब जानते हो आप भी ग़ाफ़िल की ख़ासियत
फिर क्या है यह के वक़्त पर आकर मिला करो
-‘ग़ाफ़िल’
क्यूँ मैं कहूँ के आप भी ये फ़ैसला करो
मैं तो किया हूँ इश्क़ ये मर्ज़ी है आपकी
रक्खो मुझे जी दिल में के दिल से जुदा करो
रुस्वाइयों से चाहिए मुझको नहीं निजात
इतना मगर हो आप ही बाइस हुआ करो
दुनिया के रंगो आब में घुल मिल गए हैं सब
मैं क्या हूँ आप क्या हो न ये तज़्किरा करो
जब जानते हो आप भी ग़ाफ़िल की ख़ासियत
फिर क्या है यह के वक़्त पर आकर मिला करो
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-08-2018) को "बता कहीं दिखा कोई उल्लू" (चर्चा अंक-3061) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'