शख़्स जो डगमगा नहीं सकते
अस्ल रस्ते पर आ नहीं सकते
ज़िन्दगी इक हसीन गीत है गो
लोग पर गुनगुना नहीं सकते
ऐसी कुछ शै हैं जैसे तू है जिन्हें
सोच सकते हैं पा नहीं सकते
वस्ल का उनके ख़्वाब देखें क्यूँ
जिनको हम घर बुला नहीं सकते
हक़ है क्या तोड़ने का ग़ाफ़िल अगर
हम कोई गुल खिला नहीं सकते
-‘ग़ाफ़िल’
अस्ल रस्ते पर आ नहीं सकते
ज़िन्दगी इक हसीन गीत है गो
लोग पर गुनगुना नहीं सकते
ऐसी कुछ शै हैं जैसे तू है जिन्हें
सोच सकते हैं पा नहीं सकते
वस्ल का उनके ख़्वाब देखें क्यूँ
जिनको हम घर बुला नहीं सकते
हक़ है क्या तोड़ने का ग़ाफ़िल अगर
हम कोई गुल खिला नहीं सकते
-‘ग़ाफ़िल’
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०६ अगस्त २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
धन्यवाद जी
Deleteवाह
ReplyDeleteशुक्रिया जनाब
Delete
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 8 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभार आदरणीया
Deleteवाह!!लाजवाब!!
ReplyDeleteआभार आदरणीया
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