किस्मत की लत गन्दी लत है
वैसे भी किस्मत किस्मत है
रोने की अब क्या किल्लत है
वस्लत नहीं है ये हिज्रत है
एक क़त्आ-
‘‘टाल रहा है इश्क़ की अर्ज़ी
लगता है तू बदनीयत है
फूल कोई गो खिला है जी में
चेहरे की जो यह रंगत है’’
इतना गुमसुम रहता है क्या
तुझको भी मरज़े उल्फ़त है
इश्क़ में जो है मेरी है ही
क्या यूँ ही तेरी भी गत है
लेकिन दुआ सलाम तो है ही
आपस में गोया नफ़्रत है
एक और क़त्आ-
‘‘जी छूटा जंजाल मिटा फिर
पाने की किसको हाजत है
साथ निभाए भी कितने दिन
ग़ाफ़िल ये शानोशौकत है’’
-‘ग़ाफ़िल’
वैसे भी किस्मत किस्मत है
रोने की अब क्या किल्लत है
वस्लत नहीं है ये हिज्रत है
एक क़त्आ-
‘‘टाल रहा है इश्क़ की अर्ज़ी
लगता है तू बदनीयत है
फूल कोई गो खिला है जी में
चेहरे की जो यह रंगत है’’
इतना गुमसुम रहता है क्या
तुझको भी मरज़े उल्फ़त है
इश्क़ में जो है मेरी है ही
क्या यूँ ही तेरी भी गत है
लेकिन दुआ सलाम तो है ही
आपस में गोया नफ़्रत है
एक और क़त्आ-
‘‘जी छूटा जंजाल मिटा फिर
पाने की किसको हाजत है
साथ निभाए भी कितने दिन
ग़ाफ़िल ये शानोशौकत है’’
-‘ग़ाफ़िल’
वाह
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Delete, आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २१५० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteशुक्रिया आपका जो हमसे मिले - 2150 वीं ब्लॉग-बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २७ अगस्त २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
इतना गुमसुम रहता है क्या
ReplyDeleteतुझको भी मरज़े उल्फ़त है
इश्क़ में जो है मेरी है ही
क्या यूँ ही तेरी भी गत है
बहुत ही रोचक और भावप्रवण रचना आदरणीय | सादर --