काटा किसी ने और गो बोता रहा हूँ मैं
दुनिया के आगे यूँ भी तमाशा रहा हूँ मैं
आया नहीं ही लुत्फ़ बगल से गुज़र गया
इतना कहा भी मैंने के तेरा रहा हूँ मैं
इल्ज़ाम क्यूँ लगाऊँ तुझी पर ऐ बेवफ़ा
ख़ुद से भी जब फ़रेब ही खाता रहा हूँ मैं
मुझसे किया न जाएगा तौहीने मर्तबा
कुछ भी नहीं कहूँगा के क्या क्या रहा हूँ मैं
ग़ाफ़िल हूँ मानता हूँ मगर तू ये जान ले
तुझ बेवफ़ा से वैसे भी अच्छा रहा हूँ मैं
-‘ग़ाफ़िल’
दुनिया के आगे यूँ भी तमाशा रहा हूँ मैं
आया नहीं ही लुत्फ़ बगल से गुज़र गया
इतना कहा भी मैंने के तेरा रहा हूँ मैं
इल्ज़ाम क्यूँ लगाऊँ तुझी पर ऐ बेवफ़ा
ख़ुद से भी जब फ़रेब ही खाता रहा हूँ मैं
मुझसे किया न जाएगा तौहीने मर्तबा
कुछ भी नहीं कहूँगा के क्या क्या रहा हूँ मैं
ग़ाफ़िल हूँ मानता हूँ मगर तू ये जान ले
तुझ बेवफ़ा से वैसे भी अच्छा रहा हूँ मैं
-‘ग़ाफ़िल’
बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई!