हम प्यार समझते हैं व्यापार समझते हैं
तुझको तो हर इक सू से ऐ यार! समझते हैं
समझेगी भी ये दुनिया क्या ख़ाक ख़लिश दिल की
समझो तो ये हर बातें दिलदार समझते हैं
इक पल को ठहर जाएँ है इतने को ही दुनिया
हम हैं के इसे अपना घर-बार समझते हैं
कुछ और नहीं समझें मुम्क़िन है ये जाने जाँ
पर ज़ीस्त में हम अपना किरदार समझते हैं
पुरवाई का आलम है जुल्फ़ों के हैं अब्र उड़ते
हम प्यार की बारिश के आसार समझते हैं
ग़ाफ़िल जी ज़रा सोचो ख़ुश्बूओं की लज़्जत को
गर फूल नहीं तो फिर क्या ख़ार समझते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
तुझको तो हर इक सू से ऐ यार! समझते हैं
समझेगी भी ये दुनिया क्या ख़ाक ख़लिश दिल की
समझो तो ये हर बातें दिलदार समझते हैं
इक पल को ठहर जाएँ है इतने को ही दुनिया
हम हैं के इसे अपना घर-बार समझते हैं
कुछ और नहीं समझें मुम्क़िन है ये जाने जाँ
पर ज़ीस्त में हम अपना किरदार समझते हैं
पुरवाई का आलम है जुल्फ़ों के हैं अब्र उड़ते
हम प्यार की बारिश के आसार समझते हैं
ग़ाफ़िल जी ज़रा सोचो ख़ुश्बूओं की लज़्जत को
गर फूल नहीं तो फिर क्या ख़ार समझते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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