Wednesday, October 16, 2019

अब किधर है वो गली याद नहीं

कोई नाज़ुक सी कली याद नहीं
कब थी पुरवाई चली याद नहीं

हुस्न ये सच है तेरी ख़्वाहिश कब
मेरी आँखों में पली याद नहीं

जब गुज़रता रहा वक़्त और था वह
अब किधर है वो गली याद नहीं

हिज्र तो याद है पर वस्ल की रात
आई कब और ढली याद नहीं

गो मैं ग़ाफ़िल हूँ नहीं इश्क़ की पर
आग थी कैसे जली याद नहीं

-‘ग़ाफ़िल’

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 18 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१८-१०-२०१९ ) को " व्याकुल पथिक की आत्मकथा " (चर्चा अंक- ३४९३ ) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  3. Therefore dissertation web-sites as a result of online to set-up safe and sound ostensibly taped in the website.

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