हिस्से गोया सराब आता है
लुत्फ़ फिर भी जनाब आता है
या ख़ुदा वाह रे तेरा कर्तब
ख़ार पर जो गुलाब आता है
दिल टँगा हो ख़जूर की टहनी
तो परिंदा भी दाब आता है
दिन में भी आए माहताब मगर
सोने पर ही तो ख़्वाब आता है
फेंको तो झील में बस इक पत्थर
देखो कैसे हुबाब आता है
गो के आता है गुस्सा मुझको भी पर
क्यूँ मैं बोलूँ के सा'ब आता है
रश्क़ इस पर के आए ग़ाफ़िल जब
ग़ुल के ख़ानाख़राब आता है
-‘ग़ाफ़िल’
लाजवाब
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया जोशी साहब
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