जैसे मामूल निभाया है दुबारा हँसके
फिर कोई फूल नुमाया है दुबारा हँसके
जुल्फ-ज़िन्दाँ में ही इक उम्र गुज़ारी हमने
फिर कोई जाल बिछाया है दुबारा हँसके
बस अभी दिल के झरोखों की मरम्मत की थी
फिर कोई संग चलाया है दुबारा हँसके
नींंद ही टूटती आयी है रहे बाकी ही ख़्वाब
फिर कोई ख़्वाब दिखाया है दुबारा हँसके
दिले गुमगश्ता की थी फिक़्र कहाँ ग़ाफ़िल को
फिर कोई याद दिलाया है दुबारा हँसके
-‘ग़ाफ़िल’
(मामूल=सामान्यचर्या, नुमाया=द्रष्टव्य, ज़ुल्फ़ जिन्दाँ=ज़ुल्फ़ रूपी कारागार, संग=पत्थर, गुमगश्त:=खोया हुआ)
फिर कोई फूल नुमाया है दुबारा हँसके
जुल्फ-ज़िन्दाँ में ही इक उम्र गुज़ारी हमने
फिर कोई जाल बिछाया है दुबारा हँसके
बस अभी दिल के झरोखों की मरम्मत की थी
फिर कोई संग चलाया है दुबारा हँसके
नींंद ही टूटती आयी है रहे बाकी ही ख़्वाब
फिर कोई ख़्वाब दिखाया है दुबारा हँसके
दिले गुमगश्ता की थी फिक़्र कहाँ ग़ाफ़िल को
फिर कोई याद दिलाया है दुबारा हँसके
-‘ग़ाफ़िल’
(मामूल=सामान्यचर्या, नुमाया=द्रष्टव्य, ज़ुल्फ़ जिन्दाँ=ज़ुल्फ़ रूपी कारागार, संग=पत्थर, गुमगश्त:=खोया हुआ)
बस अभी दिल के झरोखों की मरम्मत की थी,
ReplyDeleteफिर कोई संग चलाया है दुबारा हँसके।
वाह, साहब, क्या बात है।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल।
बधाई स्वीकार करें।
bahut badhiyaa gazal
ReplyDeleteदुबारा हँसना तो परेशानी का सबब बन गया ||
ReplyDeleteयह किधर मन गया ??
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ||
बहुत बधाई ||
Gafil sahab,
ReplyDeleteye sang(patthar) jyada jor se to nahin laga?
थी कहाँ फ़िक्र ही 'ग़ाफ़िल' को गुमशुदा दिल की,
ReplyDeleteफिर कोई याद दिलाया है दुबारा हँसके॥
--
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल!
यह हँसी हमेशा कायम रहे!
बस अभी दिल के झरोखों की मरम्मत की थी,
ReplyDeleteफिर कोई संग चलाया है दुबारा हँसके।
नीद ही टूटती आयी थी ख़ाब बाकी थे,
फिर कोई ख़ाब दिखाया है दुबारा हँसके।
बहुत खूबसूरत गज़ल
बस अभी दिल के झरोखों की मरम्मत की थी,
ReplyDeleteफिर कोई संग चलाया है दुबारा हँसके।...maja aa gaya itni pyaari ghazal padhkar..umda ghazal
जुल्फ-ज़िन्दाँ में ही इक उम्र गुज़ारी हमने,
ReplyDeleteफिर कोई जाल बिछाया है दुबारा हँसके।
...बहुत खूब ! लाज़वाब गज़ल ...
dubara hansne me to badi takat hai.
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन...
ReplyDeleteनीद ही टूटती आयी थी ख़ाब बाकी थे,
ReplyDeleteफिर कोई ख़ाब दिखाया है दुबारा हँसके।
beautiful poem
bahut khoob likha
ReplyDeleteबस अभी दिल के झरोखों की मरम्मत की थी,
ReplyDeleteफिर कोई संग चलाया है दुबारा हँसके।
वाह! वाह!!
क्या बात कही है ग़ाफ़िल साहब!
पत्थर चलाकर दिल तोड़ने वाले को इसी में मज़ा आता है!!
खूबसूरत गज़ल...........
ReplyDeleteबस अभी दिल के झरोखों की मरम्मत की थी,
फिर कोई संग चलाया है दुबारा हँसके...................
वाह क्या बात है...
बेहतरीन अन्दाज़े बयाँ......
ReplyDeleteनीद ही टूटती आयी थी ख़ाब बाकी थे,
ReplyDeleteफिर कोई ख़ाब दिखाया है दुबारा हँसके।
बहुत सुंदर।
बहुत प्यारी ग़ज़ल गाफिल साहब !
ReplyDeleteहर शेर अर्थपूर्ण....जानदार
gazal ka ek ek sher lajavab hai bahut sunder nind hi ................wala sher to kamal hai
ReplyDeletebahut bahut badhai
saader
rachana
bahut achchi ghazal!!!urdu aur hindi ke saral shbdo ke prayog ne ese aur sarv sulabh bana diya. sadhuvad
ReplyDeleteसुन्दर रचना बधाई
ReplyDeleteदिल के झरोखों की मरम्मत---बात है खूबसूरत..।
ReplyDeleteथी कहाँ फ़िक्र ही 'ग़ाफ़िल' को गुमशुदा दिल की,
ReplyDeleteफिर कोई याद दिलाया है दुबारा हँसके॥
बहुत अच्छी गज़ल । बधाई ...
थी कहाँ फ़िक्र ही 'ग़ाफ़िल' को गुमशुदा दिल की,
ReplyDeleteफिर कोई याद दिलाया है दुबारा हँसके॥
waah ! Beautiful ghazal.
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