क्यूँ अब इस बस्ती में अक्सर हैवान ही पाए जाते हैं?
भोली-भाली सूरत वाले शैतान ही पाए जाते हैं॥
क्यूँ इंसानों की बदहालत बदतर ही होती जाती है?
सतरंगी सपने दिखलाकर नादान नचाए जाते हैं।
उनके मतबख में शाम सरह है गोश्त पके इंसानों का,
सूखी लकड़ी के बदले क्यूँ इंसान जलाये जाते हैं?
क्यूँ ममता रोज़ बिलखती है? क्यूँ भाईचारा मरता है?
इक प्यार की सिसकन के सुर में, क्यूँ गीत सजाये जाते है?
‘ग़ाफ़िल’ यह कैसी अनहोनी यह कैसे बेड़ा ग़र्क़ हुआ
क्यूँ दो कौड़ी की क़ीमत पर ईमान भुनाये जाते हैं?
(मतबख=पाकशाला)
-‘ग़ाफ़िल’
भोली-भाली सूरत वाले शैतान ही पाए जाते हैं॥
क्यूँ इंसानों की बदहालत बदतर ही होती जाती है?
सतरंगी सपने दिखलाकर नादान नचाए जाते हैं।
उनके मतबख में शाम सरह है गोश्त पके इंसानों का,
सूखी लकड़ी के बदले क्यूँ इंसान जलाये जाते हैं?
क्यूँ ममता रोज़ बिलखती है? क्यूँ भाईचारा मरता है?
इक प्यार की सिसकन के सुर में, क्यूँ गीत सजाये जाते है?
‘ग़ाफ़िल’ यह कैसी अनहोनी यह कैसे बेड़ा ग़र्क़ हुआ
क्यूँ दो कौड़ी की क़ीमत पर ईमान भुनाये जाते हैं?
(मतबख=पाकशाला)
-‘ग़ाफ़िल’
ग़ाफ़िल' क्या हुआ ज़माने को? ये कैसे बेड़ा ग़र्क़ हुआ?
ReplyDeleteक्यूँ दो कौड़ी की कीमत पर, ईमान भुनाये जाते हैं?
-बहुत शानदार.....सच बयानी!!!
हर कोई लालच के करीब हुआ
ReplyDeleteअपनों से दूर हुआ
नहीं कोई जात ऐसे इंसान की .....
सूखी लकड़ी के बदले क्यूँ इंसान जलाये जाते हैं?
ReplyDeleteगाफिल जी ये आपकी सबसे अच्छी रचनाओं में से एक है |
हर पंक्ति में आग है और यहाँ ----
बड़ी मुहब्बत से यारा , ये पाठक जलाए जाते हैं ||
kyun aakhir kyun ....... prashn sar patak rahe , koi kuch kahta hi nahi.
ReplyDeleteभोली-भाली सूरत वाले शैतान ही पाए जाते हैं
ReplyDeletebeautiful poem
bahut khoooob!!!chaliye ghazal ishq se bahar to nikli
ReplyDelete@ सूखी लकड़ी के बदले क्यूँ इंसान जलाये जाते हैं?
ReplyDeleteबहुत ही क्रूर सच है यह!
'ग़ाफ़िल' क्या हुआ ज़माने को? ये कैसे बेड़ा ग़र्क़ हुआ?
ReplyDeleteक्यूँ दो कौड़ी की कीमत पर, ईमान भुनाये जाते हैं?
खूब मक्ता निकाला है....बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......शानदार |
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteउनके मतबख में रोज-रोज, है गोश्त आदमी का पकता,
सूखी लकड़ी के बदले क्यूँ इंसान जलाये जाते हैं?
क्यूँ ममता रोज बिलखती है? क्यूँ भाईचारा मरता है?
ReplyDeleteइक प्यार की सिसकन के सुर में, क्यूँ गीत सजाये जाते है?
--
बहुत सार्थक प्रश्न!
क्यूँ ममता रोज बिलखती है? क्यूँ भाईचारा मरता है?
ReplyDeleteइक प्यार की सिसकन के सुर में, क्यूँ गीत सजाये जाते है?
बहुत मर्मस्पर्शी और सारगर्भित प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
ग़ाफ़िल' क्या हुआ ज़माने को? ये कैसे बेड़ा ग़र्क़ हुआ?
ReplyDeleteक्यूँ दो कौड़ी की कीमत पर, ईमान भुनाये जाते हैं?
julfe zinda se nikalkar aap bahar aa gaye...ab falak pe aap bankar prashna phir se cha gaye...is hawas ki hi bajah ham aise hote ja rahe...aadmi paida hue robot hote ja rahe
क्यूँ ममता रोज बिलखती है? क्यूँ भाईचारा मरता है?
ReplyDeleteइक प्यार की सिसकन के सुर में, क्यूँ गीत सजाये जाते है?
भावमय करते शब्दों के साथ सुन्दर प्रस्तुति ।
प्रभावित करती प्रस्तुति ......
ReplyDeleteआपसे जुड़ना अच्छा लगा। बस्ती रहा हूँ चार साल। कभी आया तो मुलाकात होगी। बस्ती का अनुभव यहां लिखा है......
ReplyDeletehttp://devendra-bechainaatma.blogspot.com/2010/12/blog-post_11.html
..पढ़कर देखिए, अच्छा लगेगा।
वर्तमान हालात की विसंगतियों का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करती बढ़िया ग़ज़लं।
ReplyDeleteक्यूँ दो कौड़ी की कीमत पर, ईमान भुनाये जाते हैं
ReplyDeleteभाई जी यह आप का ही नहीं सारी मानव सभ्यता का दर्द है| बधाई स्वीकार करें इस सार्थक प्रस्तुति के लिए|
कलम तड़फती है,रोती - चिल्लाती है,
ReplyDeleteतब ऐसी रचनायें सम्मुख आती हैं.
आपके आशीर्वाद के लिये आभार.
आज की प्रगति शीलता की दौड़ में यदि किसी का पतन हुआ है तो इंसान का, यदि कोई पीछे छूट गया है तो मानवता, यदि बिक गया है तो ईमान और कोई छेज सास्ती हुई है तो इंसान की जिंदगी. सारी बातों को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से बया किया है. लक्षणा और व्यंजना तो वैसे ही मारक और तीखी होती हैं, आपने बहुत सही प्रयोग किया है उन शब्द शक्तियों का. बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |बधाई
ReplyDeleteआशा
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों के साथ सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDelete' नीम ' पेड़ एक गुण अनेक..........>>> संजय भास्कर
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2011/07/blog-post_19.html
वर्तमान परिस्थिति पर प्रश्न चिन्ह लगाती सार्थक गजल .....आभार
ReplyDeleteसंजीदा सवालात....
ReplyDeleteयह 'क्यों' आज नाग की तरह फन फैलाए खडा है और उत्तर के नाम पर हमारे पास है केवल मौन....
लाज़वाब ग़ज़ल....
सादर...
aapka kyun bahut sanjeeda hai guru.
ReplyDeleteक्यूँ ममता रोज बिलखती है? क्यूँ भाईचारा मरता है?
ReplyDeleteइक प्यार की सिसकन के सुर में, क्यूँ गीत सजाये जाते है?
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
achchi kavita!!! dil ki awaz!!!
ReplyDeleteआप सभी शुभचिंतकों को मेरी रचना पढ़कर उस पर माकूल टिप्पणी दर्ज़ करने का बहुत-बहुत आभार और धन्यवाद
ReplyDeleteगाफिल क्या हुआ ज़माने को ? ये कैसा बेडा गर्क हुआ ?
ReplyDeleteक्यूँ दो कौड़ी की कीमत पर,ईमान भुनाए जाते हैं ?
.........................व्याकुल भावों का जोरदार शेर
..................उम्दा ग़ज़ल , हर शेर बेहतरीन
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
ReplyDeleteitna badhiyaan kyun likhe ?
ReplyDeleteमिश्र जी नमस्कार्। आपका ब्लाग देखा मुझे आपकी ए रचना अच्छी लगी।-- क्या हुआ ज़माने को? ये कैसे बेड़ा ग़र्क़ हुआ?क्यूँ दो कौड़ी की कीमत पर, ईमान भुनाये जाते हैं?बहुत सुन्दर लाइनें।जयहिन्द।
ReplyDeleteबाहुत ही शानदार , आभार
ReplyDeleteसमाज का सत्य ...
ReplyDeleteक्यूँ ममता रोज बिलखती है? क्यूँ भाईचारा मरता है?
ReplyDeleteइक प्यार की सिसकन के सुर में, क्यूँ गीत सजाये जाते है?..
I don't think anyone can answer this question...
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