मौत का और तो कोई सबब नहीं होता।
ग़रचे इक शोख नज़र का ग़जब नहीं होता॥
जब हो मुस्कान की तासीर भी मानिन्दे ज़हर,
फिर तो बह्रे-फ़ना किस ओर, कब नहीं होता?
मेरे जानिब से गुज़रते हैं अज्नबी की तरह,
अब उन्हें इश्क़ में शायद तरब नहीं होता।
हश्र मेरा भी सनम अबके यूँ नहीं होता,
दिल जो गुस्ताख़ यार तेरा तब नहीं होता।
आह को उम्र मिले लाख बे-असर ही रहे,
उसका एहसास किसी दिल को जब नहीं होता।
क़त्ल भी मेरा ही, इल्ज़ाम भी है मेरे सर,
कोई ऐसा भी तो ग़ाफ़िल अज़ब नहीं होता॥
जब हो मुस्कान की तासीर भी मानिन्दे ज़हर,
ReplyDeleteफिर तो बह्रे-फ़ना किस ओर, कब नहीं होता?
बहुत खूब ...खूबसूरत गज़ल
बेहतरीन अश’आर
ReplyDeleteहश्र मेरा भी सनम अबके यूँ नहीं होता,
ReplyDeleteदिल जो गुस्ताख़ यार तेरा तब नहीं होता।
बहुत सुन्दर रचना ,सार्थक विषय
आदरणीय ग़ाफ़िल जी
ReplyDeleteनमस्कार !
......बहुत उम्दा रचना है सर,
दिल की गहराईयों को छूने वाली बेहद खूबसूरत गज़ल
बेहतरीन गज़ल,
ReplyDeleteसाभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
जब हो मुस्कान की तासीर भी मानिन्दे ज़हर,
ReplyDeleteफिर तो बह्रे-फ़ना किस ओर, कब नहीं होता?
...वाह!
मुअज्जज ग़ालिब ने कहा ".... चाहिए एक उम्र असर होने तक..." वह तब की बात थी...आप ने आज का सत्य कहा है...
ReplyDeleteआह को उम्र मिले लाख बे-असर ही रहे,
उसका एहसास किसी दिल को जब नहीं होता।
असरदार ग़ज़ल सर...
सादर...
आह को उम्र मिले लाख बे-असर ही रहे,
ReplyDeleteउसका एहसास किसी दिल को जब नहीं होता।
बेहतरीन ग़ज़ल।
जब हो मुस्कान की तासीर भी मानिन्दे ज़हर,
ReplyDeleteफिर तो बह्रे-फ़ना किस ओर, कब नहीं होता?
मेरे जानिब से गुज़रते हैं अज्नबी की तरह,
अब उन्हें इश्क़ में शायद तरब नहीं होता।
खूबसूरत ग़ज़ल....
हश्र मेरा भी सनम अबके यूँ नहीं होता,
ReplyDeleteदिल जो गुस्ताख़ यार तेरा तब नहीं होता।
बहुत सुन्दर ||
बधाई ||
क़त्ल भी मेरा ही, इल्ज़ाम भी है मेरे सर,
ReplyDeleteकोई ऐसा भी तो ग़ाफ़िल अज़ब नहीं होता॥
pahli baar pda aapko...
aapka blog jabardat hai...
aage bhi padna chahunga...
join kar raha hun....
mere blog par bhi aapka swaagat hai...
जब हो मुस्कान की तासीर भी मानिन्दे ज़हर,
ReplyDeleteफिर तो बह्रे-फ़ना किस ओर, कब नहीं होता?
shaandar.
बेहतरीन गज़ल,
ReplyDeleteसाभार,
गज़ब की गज़ल है आखिरी शेर तो लाजवाब है।
ReplyDeletebehtreen ghazal really last sher kabile tareef hai.
ReplyDeleteआप सभी शुभचिंतकों का बहुत-बहुत आभार
ReplyDeleteआह को उम्र मिले लाख बे-असर ही रहे
ReplyDeleteउसका एहसास किसी दिल को जब नहीं होता '
.............वाह ! अति सुन्दर
बहुत ही बेहतरीन और उम्दा गजल
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeletebehtreen prstuti...
ReplyDeleteआह को उम्र मिले लाख बे-असर ही रहे,
ReplyDeleteउसका एहसास किसी दिल को जब नहीं होता।
वाह !!!!!!!!!!!!फिदा हो गए हम तो.........
आह को उम्र मिले लाख बे-असर ही रहे,
ReplyDeleteउसका एहसास किसी दिल को जब नहीं होता।
वाह !!!!!!!!!!!!फिदा हो गए हम तो.........