वो तरन्नुम न रहा और वो तराना न रहा,
साज ऐसा हूँ के अब जिसका बजाना न रहा।
गुल का हर शख़्स हमेशा ही तलबगार रहा,
शाखे- गुल का कोई महफूज ठिकाना न रहा।
थे कभी पँखुड़ी गुलाब के से नाज़ुक लब,
अब तो शोला हैं मीर! अब वो फसाना न रहा।
तू जो कहता है इन्तिजार और कर लूँगा,
वैसे भी क़ब्र पे मेरी तेरा आना न रहा।
'आग इक थी लगी' यह बात याद करने को,
ज़िश्तरूई का मेरे कम तो बहाना न रहा।
ज़ीनते- चश्म वो मेरी है अब कहाँ ग़ाफ़िल?
चश्म के ज़ेरे- असर कोई दीवाना न रहा॥
vah keya baat hai
ReplyDeleteतू जो कहता है इन्तिजार और कर लूँगा,
ReplyDeleteवैसे भी क़ब्र पे मेरी तेरा आना न रहा।
waha bahut khub.......
आदरणीय ग़ाफ़िल जी
ReplyDeleteनमस्कार !
.....बेहतरीन गज़ल,
बहुत सुंदर, पहली ही लाइन से धार पर आ गई गजल
ReplyDeleteवो तरन्नुम न रहा और वो तराना न रहा,
साज ऐसा हूँ के अब जिसका बजाना न रहा।
baat dil ki hai to phir dil se hi ki jayegee...ghazal jab shaandar to dil se hi dad di jayegi...har sher shandar..jaandar praastuti.badhai
ReplyDeleteवो तरन्नुम न रह और वो तराना न रहा
ReplyDeleteसाज़ ऐसा हूँ के अब जिसका बजाना न रहा
.................गज़ब का मुखड़ा
.........हर शेर उम्दा ....बेहतरीन ग़ज़ल
तू जो कहता है इन्तिजार और कर लूँगा,
ReplyDeleteवैसे भी क़ब्र पे मेरी तेरा आना न रहा।
bahut khub sir.....
behatreen ghazal.....
गुल का हर शख़्स हमेशा ही तलबगार रहा,
ReplyDeleteशाखे- गुल का कोई महफूज ठिकाना न रहा।
बहुत उम्दा ग़ज़ल।
हर शेर लाजवाब।
थे कभी पँखुड़ी गुलाब के से नाज़ुक लब,
ReplyDeleteअब तो शोला हैं मीर! अब वो फसाना न रहा।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत उम्दा ग़ज़ल है ज़नाब!
ReplyDeleteथे कभी पँखुड़ी गुलाब के से नाज़ुक लब,
ReplyDeleteअब तो शोला हैं मीर! अब वो फसाना न रहा।
बहुत उम्दा गज़ल!!!!
ज़ीनते- चश्म वो मेरी है अब कहाँ ग़ाफ़िल?
ReplyDeleteचश्म के ज़ेरे- असर कोई दीवाना न रहा॥
bahut sunder bhaav...
सुंदर ग़ज़ल....
ReplyDeleteshaandar gazal ki prstuti....
ReplyDeleteहर शेर का अपना वजूद है, काफी है कमाल करने को , भूरी -२ प्रशंसा करते हैंआपकी रचना का /
ReplyDeleteथे कभी पँखुड़ी गुलाब के से नाज़ुक लब,
ReplyDeleteअब तो शोला हैं मीर! अब वो फसाना न रहा।
बधाई ||
बहुत खूबसूरत गज़ल ..हर अशआर खूबसरती से अपनी बात कहता हुआ
ReplyDeleteतू जो कहता है इन्तिजार और कर लूँगा,
ReplyDeleteवैसे भी क़ब्र पे मेरी तेरा आना न रहा।
बहुत उम्दा गज़ल है सर, सादर...
बहुत सुन्दर नज़्म्।
ReplyDeletelagta hai aap urdu sikhake chorege !! jitni samajh me aayee utni to bahut achchi lagi.!!!
ReplyDeleteवो तरन्नुम न रहा और वो तराना न रहा,
ReplyDeleteसाज ऐसा हूँ के अब जिसका बजाना न रहा
खूबसूरत गजल...आभार.
सादर,
डोरोथी.
गुल का हर शख़्स.............
ReplyDeleteजिश्तरूई का मेरे.................
बहुत खूब
घनाक्षरी समापन पोस्ट - १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द
आदरणीय ग़ाफ़िल जी नमस्कार.....भावपूर्ण अभिव्यक्ति और सुन्दर प्रस्तुति........ बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeletethe best ghazal
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना |बधाई |
ReplyDeleteआशा
सुंदर ग़ज़ल........
ReplyDeleteBAHUT HI SUNDAR
ReplyDeleteKya batt hai
ReplyDeleteवो तरन्नुम न रहा और वो तराना न रहा,
ReplyDeleteसाज ऐसा हूँ के अब जिसका बजाना न रहा।
ग़ाफिल.... साज बजाता हूं.. अपने लिए.. और वो तो बजाता ही रहूंगा..