देखने वाले कभी गौर से, गर देखेंगे
इश्क़ के सामने ख़म हुस्न का सर देखेंगे
हैं अभी दूर हमें पास तो आने दे ज़रा
तेरे आरिज़ पे भी अश्क़ों के गुहर देखेंगे
इस तेरी हिक़्मते-फ़ुर्क़त का गिला क्या करना
इश्क़ हमने है किया हम ही ज़रर देखेंगे
लोग देखे हैं, फ़क़त हम ही रहे हैं महरूम
आज तो हम भी मुहब्बत का असर देखेंगे
गो के हैं और भी ग़म याँ पे मुहब्बत के सिवा
पर अभी आए हैं तो हम भी ये दर देखेंगे
तू जो ग़ाफ़िल है मुहब्बत से हमारी यूँ सनम
है अभी रात मगर हम भी सहर देखेंगे
(आरिज़=गाल, हिक्मते फ़ुर्क़त=ज़ुदा होने की तर्क़ीब, ज़रर=नुक़्सान)
-‘ग़ाफ़िल’
इश्क़ के सामने ख़म हुस्न का सर देखेंगे
हैं अभी दूर हमें पास तो आने दे ज़रा
तेरे आरिज़ पे भी अश्क़ों के गुहर देखेंगे
इस तेरी हिक़्मते-फ़ुर्क़त का गिला क्या करना
इश्क़ हमने है किया हम ही ज़रर देखेंगे
लोग देखे हैं, फ़क़त हम ही रहे हैं महरूम
आज तो हम भी मुहब्बत का असर देखेंगे
गो के हैं और भी ग़म याँ पे मुहब्बत के सिवा
पर अभी आए हैं तो हम भी ये दर देखेंगे
तू जो ग़ाफ़िल है मुहब्बत से हमारी यूँ सनम
है अभी रात मगर हम भी सहर देखेंगे
(आरिज़=गाल, हिक्मते फ़ुर्क़त=ज़ुदा होने की तर्क़ीब, ज़रर=नुक़्सान)
-‘ग़ाफ़िल’
अनुपम भाव लिए सुंदर गजल,
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट के लिए गाफिल जी बधाई.....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
गाफिल साहब इस मर्तबा अलफ़ाज़ के मायने न दिए आपने ,ग़ज़ल अच्छी है ,बहुत अच्छी ,जो समझ ,आ जाती ,तो और भी अच्छी (होती )कहते .
ReplyDeleteराम राम भाई! अल्फ़ाज़ के मानी हमने लिख दिया है असुविधा के लिए मुआफ़ी! आप आये और नेक सलाह दी शुक्रिया!
Deleteवाह गा़फ़िल साहेब, बहुत उम्दा गज़ल कही है- दाद कबूलें.
ReplyDeleteमुहब्बत के जलवे हैं ..और क्या :)
ReplyDeleteकल यह चर्चा मंच पर भी है |
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति |
बहुत बहुत बधाई ||
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने!
ReplyDeleteबधाई हो ग़ाफिल साहिब!
अब तलक सुनते ही आये हैं नहीं देखे हैं,
ReplyDeleteआज हम अदबे-मुहब्बत का हुनर देखेंगे।
अहा! मन प्रसन्न हो गया। एक दम मक्खन की तरह आपके शे’र होते हैं। लाजवाब!
gahan ,sunder prastuti ...!!
ReplyDeletemera pahle walaa comment kaan chala gay...lekin meri baat aap tak pahunch gayee..wahi urdhu ke meaning...lekin ab dekha to meaning likhe hue hai..behtarin ghazal ..sadar badhayee ke sath
ReplyDeleteआमीन !
ReplyDeleteजरूर देखेंगे !
आज शुक्रवार
ReplyDeleteचर्चा मंच पर
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति ||
charchamanch.blogspot.com
behtreen gazal....
ReplyDeleteaameen
ReplyDeleteaap sahar zaroor dekhenge
khoobsurat gazal...daad kabool karen sir..
ReplyDeleteलोग कहते हैं 'और ग़म हैं मुहब्बत के सिवा',
ReplyDeleteहम अभी आये हैं तो हम भी इधर देखेंगे।
वाह, वाह!....क्या बात है!...जरुर देखेंगे!
बेहद शानदार लाजवाब गज़ल....
ReplyDeleteबैसाखी के पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं.
खूबसूरत गज़ल कही है .
ReplyDeleteखूब लिखा है.
ReplyDeleteग़ज़ब की ग़ज़ल भाई.
आपने तो पाकीज़ा का वो गाना याद दिला दिया:-
आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे.
तीरे-नज़र देखेंगे,ज़ख्मे-जिगर देखेंगे.
shandar, lajwaab umda gazel.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteबैसाखी के पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं.
सर्वप्रथम बैशाखी की शुभकामनाएँ और जलियाँवाला बाग के शहीदों को नमन!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
सूचनार्थ!
लोग कहते हैं 'और ग़म हैं मुहब्बत के सिवा',
ReplyDeleteहम अभी आये हैं तो हम भी इधर देखेंगे।
Bahut Umda...Khoob Kaha...
तू जो 'ग़ाफ़िल' है सनम जानिबे-उल्फ़त से मिरी,
ReplyDeleteयूँ अभी शब है, अभी हम भी सहर देखेंगे।।
....बहुत खूब ! बेहतरीन गज़ल..
है दुआ हमारी साथ,सब के सब हों कामयाब
ReplyDeleteक्या बताएं सुन के हाल,क्या आपसे सुनेंगे!
बहुत दिनों के बाद आपकी गज़ल सुनकर मस्त हुये, शुक्रिया आपका....
ReplyDeleteहैं अभी फ़ासले, नज़्दीकियां भी होंगी, तब!
ReplyDeleteतेरे आरिज़ पे भी अश्क़ों का ग़ुहर देखेंगे।
यूँ तिरी हिक्मते-फ़ुर्क़त का न गिला हमको,
इश्क़ हमने है किया हम ही ज़रर देखेंगे।
बहुत ही सुन्दर और गहनता से परिपूर्ण रचना हर शेर लाजबाब......... आभार के साथ ही बधाई भी स्वीकारें मिश्र जी |
vaah bahut khoobsurat ghazal.....daad kabool kijiye
ReplyDeleteयूँ तिरी हिक्मते-फ़ुर्क़त का न गिला हमको,
ReplyDeleteइश्क़ हमने है किया हम ही ज़रर देखेंगे।
.......लाजबाब !!!
तू जो 'ग़ाफ़िल' है सनम जानिबे-उल्फ़त से मिरी,
ReplyDeleteयूँ अभी शब है, अभी हम भी सहर देखेंगे॥
अब ख़म ठोक के हम भी कह सकते हैं ग़ज़ल अच्छी है दोश्त ,तू भी अच्छा है .
ReplyDeleteयूँ तिरी हिक्मते-फ़ुर्क़त का न गिला हमको,
ReplyDeleteइश्क़ हमने है किया हम ही ज़रर देखेंगे।
....बहुत खूब ! बेहतरीन गज़ल..
अब तलक सुनते ही आये हैं नहीं देखे हैं,
ReplyDeleteआज हम अदबे-मुहब्बत का हुनर देखेंगे।
लोग कहते हैं श्और गम हैं मुहब्बत के सिवाश्,
हम अभी आये हैं तो हम भी इधर देखेंगे।
शानदार, बहुत ही शानदार !
क्लासिकल ग़ज़ल।
आपका यह उम्दा कलाम ब्लॉगर्स मीट वीकली 40 में
ReplyDeletehttp://hbfint.blogspot.in/2012/04/40-last-sermon.html
शानदार .शानदार, शानदार...
ReplyDelete:-) :-) :-)