1-
नारी संग से क्यों डरे, नारी सुख कर धाम।
नारी बिन रघुपतिहुँ कर, होत अधूरा नाम।।
होत अधूरा नाम, कहन मां नाहिं सुहायी,
नारी नर-मन-कलुस पलक मह दूर भगाई,
खिला पुष्प बिन ना सुहाइ जइसै फुलवारी,
ग़ाफ़िल मन बगिया वइसै लागै बिन नारी।।
2-
घर का मुखिया करमठी, रचता नये पिलान।
विकसित हो यह घर सदा बढ़ै मान-सम्मान।।
बढ़ै मान-सम्मान, सबहि मिलि काम करैंगे।
हंसी-खुशी से सबकी झोली रोज़ भरैंगे।
कछुक स्वारथी डारे हैं मन बीच तफ़रका।
ग़फ़िलौ सोचै का होई अब गति यहि घर का।।
3-
बातहिं बात बनाइये, बात बने बनिजात।
देखा बातहिं बात मह, भिश्ती नृपति कहात।।
भिश्ती नृपति कहात, होत दिल्ली कर राजा।
सिक्का चाम चलाइ, बजावत आपन बाजा।
ग़ाफ़िल कहै बिचारि, बैठिहौं पीपल पातहिं।
बात बिगरि जौ जाय, तिहारो बातहिं बातहिं।।
-ग़ाफ़िल
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
नारी संग से क्यों डरे, नारी सुख कर धाम।
नारी बिन रघुपतिहुँ कर, होत अधूरा नाम।।
होत अधूरा नाम, कहन मां नाहिं सुहायी,
नारी नर-मन-कलुस पलक मह दूर भगाई,
खिला पुष्प बिन ना सुहाइ जइसै फुलवारी,
ग़ाफ़िल मन बगिया वइसै लागै बिन नारी।।
2-
घर का मुखिया करमठी, रचता नये पिलान।
विकसित हो यह घर सदा बढ़ै मान-सम्मान।।
बढ़ै मान-सम्मान, सबहि मिलि काम करैंगे।
हंसी-खुशी से सबकी झोली रोज़ भरैंगे।
कछुक स्वारथी डारे हैं मन बीच तफ़रका।
ग़फ़िलौ सोचै का होई अब गति यहि घर का।।
3-
बातहिं बात बनाइये, बात बने बनिजात।
देखा बातहिं बात मह, भिश्ती नृपति कहात।।
भिश्ती नृपति कहात, होत दिल्ली कर राजा।
सिक्का चाम चलाइ, बजावत आपन बाजा।
ग़ाफ़िल कहै बिचारि, बैठिहौं पीपल पातहिं।
बात बिगरि जौ जाय, तिहारो बातहिं बातहिं।।
-ग़ाफ़िल
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बहुत बढ़िया प्रस्तुति,प्रभावित करती सुंदर कुण्डलियाँ ,.....
ReplyDeleteMY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
वाह भाई जी वाह ।।
ReplyDeleteआभार ।।
वाह जी वाह..........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सादर.
क्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteimpressive presentation.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteप्रभावी रचना....
वाह बहुत रोचक कुंडलियाँ पेश की हैं गाफिल जी ....बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कुंडलियाँ
ReplyDeleteबहुत सुंदर कुंडलियाँ|
ReplyDeleteVaah!! Behatreen!!
ReplyDeleteyah hai ghafi jee ka ek abaur rang..kamal hai sir..kabhi umda ghazlein, kabhi bhojpurime rachnayein..kabhi ghafil ka dhaba jaisi rachna..aaj kundliyan..in kunliyon me fasa hee liya aapne..sadar badhayee ke sath
ReplyDeleteकछुक स्वारथी डारे हैं मन बीच तफ़रका।
ReplyDeleteग़फ़िलौ सोचै का होई अब गति यहि घर का।।
WAAH BHAI WAAAAAAH
भावनायों की अभिव्यक्ति बेहद संजीदगी से बयान कर गए ....आभार
ReplyDeleteमिश्र जी !जीतनी सिद्धहस्तता आपकी उर्दू ,व खड़ी बोली में है ,उतनी ही क्षेत्रीय भाषा में भी देखने को मिलती है ,बहुत सुन्दर लेखन ..प्रसंशनीय सृजन ....शुभकामनायें जी /
ReplyDeleteकछुक स्वारथी डारे हैं मन बीच तफ़रका।
ReplyDeleteग़फ़िलौ सोचै का होई अब गति यहि घर का।।
WAAH BHAI WAAAAAAH
वाह गाफ़िल साहब इतनी बढ़िया कुंडली आप लिख दिए और हम बे -खबर रहे .चलो देर आयद दुरुस्त आयद कुंडली का मज़ा और बढ़ गया .
ReplyDeleteहिम्मत देखी आप की गया पसीना छुट
ReplyDeleteनारी संग होती मेरे, बटुए की ही लूट
आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १५ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
ReplyDeleteकछुक स्वारथी डारे हैं मन बीच तफ़रका।
ReplyDeleteग़फ़िलौ सोचै का होई अब गति यहि घर का।।
wah bhai Gafil ji .....apki kundaliyon ko padh kr maja aa gaya ....hardik badhai ke sath abhar.
Very nice...
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