आइए तो इत्तिलाकर आइए!
जाइए तो बिन बताए जाइए!
दिल मेरा है साफ़ मिस्ले-आईना,
अपने चेहरे को तो धोकर आइए!
पाइए! जी पाइए! बेहद सुकूँ,
चश्म ख़म करके ज़रा मुस्काइए!
रूख़ को झटके से नहीं यूँ मोड़िए!
आईने पर कुछ तरस तो खाइए!
हुस्न है बा-लुत्फ़ जो पर्दे में हो,
आईने से भी कभी शर्माइए!
छोड़िए! 'ग़ाफ़िल' को उसके नाम पर,
आप तो ग़ाफ़िल नहीं हो जाइए!
जाइए तो बिन बताए जाइए!
दिल मेरा है साफ़ मिस्ले-आईना,
अपने चेहरे को तो धोकर आइए!
पाइए! जी पाइए! बेहद सुकूँ,
चश्म ख़म करके ज़रा मुस्काइए!
रूख़ को झटके से नहीं यूँ मोड़िए!
आईने पर कुछ तरस तो खाइए!
हुस्न है बा-लुत्फ़ जो पर्दे में हो,
आईने से भी कभी शर्माइए!
छोड़िए! 'ग़ाफ़िल' को उसके नाम पर,
आप तो ग़ाफ़िल नहीं हो जाइए!
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
बहुत सुंदर गजल ....
ReplyDeleteहर शेर काबिले तारीफ ...गाफ़िल जी ॥
बहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteवाह,,,,क्या बात है गाफिल जी,,,,बहुत सुंदर गजल,,,,
ReplyDeleteRECENT POST : गीत,
दिल मेरा है साफ़ मिस्ले-आईना,
ReplyDeleteअपने चेहरे को तो धोकर आइए!
वाह , बहुत खूब
बहुत ही बढ़िया गजल...
ReplyDelete:-)
बहुत खूब .....
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteक्या बात
आईने पर कुछ तरस तो खाइए!
ReplyDeleteआइए तो इत्तिलाकर आइए!
जाइए तो बिन बताए जाइए!
दिल मेरा है साफ़ मिस्ले-आईना,
अपने चेहरे को तो धोकर आइए!
पाइए! जी पाइए! बेहद सुकूँ,
चश्म ख़म करके ज़रा मुस्काइए!
रूख़ को झटके से नहीं यूँ मोड़िए!
आईने पर कुछ तरस तो खाइए!
हुस्न है बा-लुत्फ़ जो पर्दे में हो,
आईने से भी कभी शर्माइए!
छोड़िए! 'ग़ाफ़िल' को उसके नाम पर,
आप तो ग़ाफ़िल नहीं हो जाइए!
आइये आजाइए आजाइए ,
यूं न रह रहके हमें तरसाइए .
छोडये सरकार को उसके रहम ,
अब न रह रह तरस उसपे खाइए .
क्या बात है गाफ़िल साहब कहतें हैं सब्र का फल मीठा होता है आते आप देर से हैं लेकिन सजसंवर के आतें हैं ,बढ़िया अश आर लातें हैं .
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteवो आते हैं चले जाते है
हमे पता कहाँ चलता है
अपनी हर खबर तो वो
सिर्फ आईने को ही बताते हैं !
behtareen prastuti,"kuch chehron ki narazi se darpan nahi dara krte hai
ReplyDeleteजब भी समय मिले, मेरे नए ब्लाग पर जरूर आएं..
ReplyDeletehttp://tvstationlive.blogspot.in/2012/09/blog-post.html?spref=fb