रात का सूनापन अपना था।
फिर जो आया वह सपना था॥
नियति स्वर्ण की थी ऐसी के
उसको भट्ठी में तपना था।
दौरे-तरक्क़ी इंसाँ काँपे
जबकी हैवाँ को कँपना था।
गरदन तो बेजा नप बैठी
दुष्ट दस्त को ही नपना था।
ग़ाफ़िल त्राहिमाम चिल्लाया
गोया राम-नाम जपना था।
फिर जो आया वह सपना था॥
नियति स्वर्ण की थी ऐसी के
उसको भट्ठी में तपना था।
दौरे-तरक्क़ी इंसाँ काँपे
जबकी हैवाँ को कँपना था।
गरदन तो बेजा नप बैठी
दुष्ट दस्त को ही नपना था।
ग़ाफ़िल त्राहिमाम चिल्लाया
गोया राम-नाम जपना था।
आप फ़ेसबुक आई.डी. से भी कमेंट कर सकते हैं-
रात की नीरवता की बखूबी कव्यमई रचना ,आभार |
ReplyDeleteआभार संगीता जी!
Deleteग़ाफ़िल त्राहिमाम चिल्लाया
ReplyDeleteगोया राम-नाम जपना था।,,,,vaah bhut khoob gafil jee badhaai,,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
धीरेन्द्र जी बहुत-बहुत आभार!
Deleteएक नए अंदाज़ में अच्छी ग़ज़ल!
ReplyDeleteआभार मनोज सर!
Delete
ReplyDeleteसोने की नीयति ही थी के
उसको भट्ठी में तपना था।
बहुत बढ़िया शैर कहा है भाई साहब .कृपया नियति कर लें नीयति को .
दौरे-तरक्क़ी इंसाँ काँपे
जबकी हैवाँ को कँपना था।
बहुत बढ़िया तंज़ है इंतजामात पे .इन्त्जामियत ,इंतजामिया पर .
राम राम भाई वीरू भाई...आपका बहुत-बहुत आभार...आपके सुझाव को अमल में लाया जा चुका है...शुक्रिया
Deletegafil trahi mam chillaye,aaj nahi to kal hona tha,gardan to nap gyee abhi, jale pr abhi namak chidkna tha
ReplyDeleteअज़ीज़ भाई बहुत-बहुत शुक़्रिया
Deleteबहुत खूब ...उम्दा गज़ल
ReplyDeleteसंगीता जी आभार आपका
Deleteबहुत दिनों बाद बढ़िया गजल पढने को मिली -
ReplyDeleteगलती करते हाथ हैं, गर्दन लेते नाप ।
दिल का होय कुसूर पर, नैनों में संताप ।।
अहा भाई रविकर जी!...आपका बहुत-बहुत शुक़्रिया...आपका टिप्पणी करने का अंदाज़ ही निराला होता है
Deleteबहुत ख़ूबसूरत गज़ल...
ReplyDeleteशर्मा जी को आदाब! और शुक़्रिया
Deleteदौरे-तरक्क़ी इंसाँ काँपे
ReplyDeleteजबकी हैवाँ को कँपना था।
गरदन तो बेजा नप बैठी
दुष्ट दस्त को ही नपना था।
....ऐसे बुरे वक्त पर रात का सूनापन और भी खलता है
बहुत खूब!
कविता जी का आभार
Deleteवाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
आभार शास्त्री जी!
Deleteमहेन्द्र सर को आदाब!
ReplyDeleteशुक़्रिया अंजू जी!
ReplyDeleteत्राहिमाम,त्राहिमाम!
ReplyDelete- बरबस मुँह से निकल पड़ता है .
सुंदर ग़ज़ल ..
ReplyDeleteबधाई ग़ाफिल जी
बहुत ही उम्दा रचना |
ReplyDeleteइस समूहिक ब्लॉग में आए और हमसे जुड़ें :- काव्य का संसार
यहाँ भी आयें:- ओ कलम !!
दौरे-तरक्क़ी इंसाँ काँपे
ReplyDeleteजबकी हैवाँ को कँपना था..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति है .15 अक्तूबर के चर्चा मंच में भ्रष्टाचार की बैसाखियाँ शामिल करने के लिए शुक्रिया .
रात का सूनापन अपना था।
फिर जो आया वह सपना था॥
नियति स्वर्ण की थी ऐसी के
ReplyDeleteउसको भट्ठी में तपना था।
..lajawab...
नींद से पहले उसकी याद
ReplyDeleteनींद में उसके सपने
फिर एकाएक जगना
फिर से उसकी याद और तन्हाइयां
इसी के साथ रात यूँ ही कट जाती हैं।
.. सुन्दर प्रस्तुती
बधाई स्वीकारें।
साँझा करने के लिए आभार !!!
मेरी पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा ..
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post_17.html