आख़िर मैंने चान (चाँद) लिख दिया।
सागर में तूफ़ान लिख दिया॥
आसमान में इक तारे सँग,
मस्ती करता उजियारे सँग,
छत पर मुझको लखा व्यँग्य से,
झट मैंने व्यवधान लिख दिया।
आख़िर मैंने चान लिख दिया॥
चान गया फिर बूढ़े वट पर,
अश्रु-चाँदनी टप-टपकाकर
मुझको द्रवित कर दिया चन्ना,
मैंने निर्भयदान लिख दिया।
आख़िर मैंने चान लिख दिया॥
दरिया अपनी रौ में चलती
सिमट-सकुच सागर से मिलती,
ग़ाफ़िल तुझको क्या सूझी के
बिन बूझे गुणगान लिख दिया।
आख़िर मैंने चान लिख दिया॥
हाँ नहीं तो!
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
सागर में तूफ़ान लिख दिया॥
आसमान में इक तारे सँग,
मस्ती करता उजियारे सँग,
छत पर मुझको लखा व्यँग्य से,
झट मैंने व्यवधान लिख दिया।
आख़िर मैंने चान लिख दिया॥
चान गया फिर बूढ़े वट पर,
अश्रु-चाँदनी टप-टपकाकर
मुझको द्रवित कर दिया चन्ना,
मैंने निर्भयदान लिख दिया।
आख़िर मैंने चान लिख दिया॥
दरिया अपनी रौ में चलती
सिमट-सकुच सागर से मिलती,
ग़ाफ़िल तुझको क्या सूझी के
बिन बूझे गुणगान लिख दिया।
आख़िर मैंने चान लिख दिया॥
हाँ नहीं तो!
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.