गोया है मिह्रबाँ आज भी ज़िन्दगी
पर कहाँ अब वो अपनी रही ज़िन्दगी
मैं था हैरान क्या हो रहा है यहाँ
और मुझसे रही खेलती ज़िन्दगी
मैं तवज़्ज़ो दिया उम्र भर बेश्तर
फिर रही क्यूँ कटी की कटी ज़िन्दगी
फ़ाइदा ग़ैर का और अपना ज़रर
तू किए जा रही वाह री ज़िन्दगी
अब तलक ख़ार चुभते चले आ रहे
फिर कहूँ क्यूँ के है रसभरी ज़िन्दगी
राह में थे हज़ारों मक़ाम उसके पर
एक की भी नहीं हो सकी ज़िन्दगी
आज गर है ख़िज़ाँ तो बहार आए कल
यह पता है तो क्या सोचती ज़िन्दगी
कह रहा हूँ के कर दे गिला दूर सब
क्या करेगी न फिर गर मिली ज़िन्दगी
जीतना था अजल को गई जीत पर
आख़िरी साँस तक है लड़ी ज़िन्दगी
सोचता ही रहा वक़्ते रुख़्सत मैं यह
एक ग़ाफ़िल की भी क्या रही ज़िन्दगी
-‘ग़ाफ़िल’
पर कहाँ अब वो अपनी रही ज़िन्दगी
मैं था हैरान क्या हो रहा है यहाँ
और मुझसे रही खेलती ज़िन्दगी
मैं तवज़्ज़ो दिया उम्र भर बेश्तर
फिर रही क्यूँ कटी की कटी ज़िन्दगी
फ़ाइदा ग़ैर का और अपना ज़रर
तू किए जा रही वाह री ज़िन्दगी
अब तलक ख़ार चुभते चले आ रहे
फिर कहूँ क्यूँ के है रसभरी ज़िन्दगी
राह में थे हज़ारों मक़ाम उसके पर
एक की भी नहीं हो सकी ज़िन्दगी
आज गर है ख़िज़ाँ तो बहार आए कल
यह पता है तो क्या सोचती ज़िन्दगी
कह रहा हूँ के कर दे गिला दूर सब
क्या करेगी न फिर गर मिली ज़िन्दगी
जीतना था अजल को गई जीत पर
आख़िरी साँस तक है लड़ी ज़िन्दगी
सोचता ही रहा वक़्ते रुख़्सत मैं यह
एक ग़ाफ़िल की भी क्या रही ज़िन्दगी
-‘ग़ाफ़िल’
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