नेकियाँ थीं ऑप्शन फिर भी बदी तक आ गये
सामने दर्या था और तुम तिश्नगी तक आ गये
पाँवों की जुम्बिश से तुमको कब रहा है इत्तेफ़ाक़
बात कुछ है चलके जो मेरी गली तक आ गये
क्या किसी की लाश को मिल भी सकी इसकी पनाह
सोचता हूँ फ़ालतू ही तुम नदी तक आ गये
है मेरे अल्लाह का ही सबसे ऊँचा मर्तबा
क्या करोगे इस भुलावे में नबी तक आ गये
कुछ क़दम ही दूर है अब मंज़िले उल्फ़त जनाब
हम सभी उश्शाक़ शे’रो शाइरी तक आ गये
नक़्ल की रौनक़ के आगे पानी भरने को ग़ज़ब
देखिए ग़ाफ़िल जी जेवर क़ीमती तक आ गये
-‘ग़ाफ़िल’
सामने दर्या था और तुम तिश्नगी तक आ गये
पाँवों की जुम्बिश से तुमको कब रहा है इत्तेफ़ाक़
बात कुछ है चलके जो मेरी गली तक आ गये
क्या किसी की लाश को मिल भी सकी इसकी पनाह
सोचता हूँ फ़ालतू ही तुम नदी तक आ गये
है मेरे अल्लाह का ही सबसे ऊँचा मर्तबा
क्या करोगे इस भुलावे में नबी तक आ गये
कुछ क़दम ही दूर है अब मंज़िले उल्फ़त जनाब
हम सभी उश्शाक़ शे’रो शाइरी तक आ गये
नक़्ल की रौनक़ के आगे पानी भरने को ग़ज़ब
देखिए ग़ाफ़िल जी जेवर क़ीमती तक आ गये
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (06-06-2016) को "पेड़ कटा-अतिक्रमण हटा" (चर्चा अंक-2365) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आपका शास्त्री जी
Delete