यह शहरे-ग़ाफ़िल है अदा भी निराली होगी
वक़्ते-इश्तक़बाल हर ज़ुबान पर गाली होगी
रुख़े-ख़ुशामदी ही खिलखिलाएगा अक्सर
और तो ठीक है पर बात ही जाली होगी
होगी होली भी और हीलाहवाली होगी
भरी दूकान होगी जेब भर खाली होगी
जिसकी दरकार जहां होगा दरकिनार वही
पुश्त में बीवी होगी रू-ब-रू साली होगी
रोज़ होगा सियाह और शब उजाली होगी
दिखेगा सब्ज़ मगर झमकती लाली होगी
नहीं मिसाल और होगा अहले दुनिया में
के क़ैस गोरा होगा लैला ही काली होगी
-‘ग़ाफ़िल’
shandar
ReplyDeletesir aapse phir kehna hai ki aapko jo shabd bahut aasan lagte hain mere liye tough hain... aap shabdo ke arth jarur devein taki ghazalon ke lutf ke sath udru seekhnein ka bhi mauka hame uplabdh ho sake
ReplyDeleteवाह! क्या शहर है...लाज़वाब
ReplyDeleteआप सभी महानुभावों का तहेदिल से शुक्रिया जो आप सब ने हमारी रचना दिलोदिमाग से पढ़ी और उसपर वाज़िब कमेंट्स किए। डॉ0 आशुतोष जी से मुआफ़ी चाहॅँगा, उनकी शिक़ायत दूर कर दी गई हे। आइन्दा यह शिक़ायत उन्हें नहीं मिलेगी।
ReplyDelete-ग़ाफ़िल
शानदार !! आज के परिवेश पर बढ़िया कटाछ है. ये हाल सिर्फ शहरे गाफिल का ही नहीं सबके शहर का है. लाजवाब रचना.
ReplyDeleteग़ाफ़िल सर!
ReplyDeleteवक्ते इस्तकबाल हर जुबान पर गाली होगी, आपकी भविष्यवाणी वर्तमान में भी फलफूल रही है। बहुत अच्छा प्रयास, धन्यवाद।
are wah!
ReplyDeleteJEB BHAR JAYGEE BHAI DO NOT WORRY
ReplyDeleteसभी शेर सच बयान करते हुए...बहुत ख़ूब
ReplyDeleteयह शहरे-ग़ाफ़िल है, अदा भी निराली होगी,
ReplyDeleteवक़्ते-इस्तक़बाल, हर जुबान पे गाली होगी।
-आप तो हमारे शहर के लगते हैं. :)
बेहतरीन गजल गाफिल साहब ||
ReplyDeleteबधाई ||
पुश्त में बीवी और रू-ब-रू साली होगी॥
ये क्या साहब दुखती रग पर दबाव बढ़ा दिया ||