आज
चला गया सहसा
अपने पार्श्व अवस्थित कमरे में
जो
मेरी जी से भी प्यारी राजदुलारी का है
जिसे
मैंने कल ही तो बिदा किया है
भ्रमित, स्तब्ध
देखता रहा मैं
सब रो रहे हैं धार-धार
कमरे के दरो-दीवार,
पलंग, बिस्तर, आदमकद आईना
या कि मेरी आँखें
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
चला गया सहसा
अपने पार्श्व अवस्थित कमरे में
जो
मेरी जी से भी प्यारी राजदुलारी का है
जिसे
मैंने कल ही तो बिदा किया है
भ्रमित, स्तब्ध
देखता रहा मैं
सब रो रहे हैं धार-धार
कमरे के दरो-दीवार,
पलंग, बिस्तर, आदमकद आईना
या कि मेरी आँखें
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
भ्रमित नहीं हों ,आपकी आँखें आपकी दिल की बात बता रही है
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं
मैंने कल ही तो बिदा किया है
ReplyDeleteभ्रमित, स्तब्ध
देखता रहा मैं
सब रो रहे हैं धार-धार
कमरे के दरो-दीवार,
पलंग, बिस्तर, आदमकद आईना
या कि मेरी आँखें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (11-05-2013) क्योंकि मैं स्त्री थी ( चर्चा मंच- 1241) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण रचना,आभार आदरणीय.
ReplyDeleteआपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 12/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
क्या कहने
ReplyDeleteबहुत सुंदर
महसूस होती रचना ..शानदार शब्द चित्र ..सादर बधाई के साथ
ReplyDeleteबेटी की बिदाई का दर्द महसूस कर रही हूँ ....सादर
ReplyDeletebhaavpoorn ... betiyon ki bidaai assan nahi hoti ...
ReplyDeleteBahut hi gambhir rachana .....mai to jan hi nahi paaya ....
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