अब हमें भी हक़ जताना चाहिए।
अब तो उनको आजमाना चाहिए॥
कब तलक होकर जमाने के रहें,
अब हमें ख़ुद का जमाना चाहिए।
है दीवाना चश्म का ख़ुशफ़ह्म के
चश्म को भी अब दीवाना चाहिए।
दिल है नाज़ुक टूटता है बेखटक,
भीड़ में उसको बचाना चाहिए।
उनके आने का बहाना कुछ न था,
उनको जाने का बहाना चाहिए।
अब तो शायद हो चुकी पूरी ग़ज़ल,
यार ग़ाफ़िल! अब तो जाना चाहिए॥
हाँ नहीं तो!
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
अब तो उनको आजमाना चाहिए॥
कब तलक होकर जमाने के रहें,
अब हमें ख़ुद का जमाना चाहिए।
है दीवाना चश्म का ख़ुशफ़ह्म के
चश्म को भी अब दीवाना चाहिए।
दिल है नाज़ुक टूटता है बेखटक,
भीड़ में उसको बचाना चाहिए।
उनके आने का बहाना कुछ न था,
उनको जाने का बहाना चाहिए।
अब तो शायद हो चुकी पूरी ग़ज़ल,
यार ग़ाफ़िल! अब तो जाना चाहिए॥
हाँ नहीं तो!
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ...हर शेर लाजवाब ...!!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(18-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
वाह! बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात
वाह ! बहुत खूब!
ReplyDeleteदेहक़ान बसा झोपड़ा महलो-मालो साह ।
ReplyDeleteहक़ मिलै न हक्क़े-नाहक़ माँगे कौन पनाह ॥
भावार्थ : -- किसान/गांववासी का झोपड़े में भी निर्वाह नहीं,
और राजा राजसी जीवन व्यतीत कर रहा है । न अधिकार
मिले, न ही न्याय मिले, अब वह किसकी शरण में जाए ॥
SUNDAR SRIJAN ,BEHATAREEN GAZAL
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार!
है दीवाना चश्म का ख़ुशफ़ह्म के
ReplyDeleteचश्म को भी अब दीवाना चाहिए।...बेहतरीन लेकिन आपसे थोडा और समझना पड़ेगा इस शेर को..सादर
दिल है नाज़ुक टूटता है बेखटक,
ReplyDeleteभीड़ में उसको बचाना चाहिए।
wah sir behtreen gazal ke liye aabhar .