Thursday, September 05, 2013

फिर भी नफ़रत सीख ले!

मान जा ऐ दिल
है बड़ी मुश्क़िल
फिर भी नफ़रत सीख ले!

तुझको जीना है
जख़्म सीना है
रात काली है
और दिवाली है

लुट चुकी अस्मत
मिट चुकी क़िस्मत
हुस्न है फन्दा
फंस गया बन्दा

कहता ये ग़ाफ़िल
ना भी बन क़ातिल
फिर भी नफ़रत सीख ले!

मान जा ऐ दिल
है बड़ी मुश्क़िल
फिर भी नफ़रत सीख ले!

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6 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति -
    आभार आदरणीय गाफिल जी -

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  2. अजी आज सीखने की कहाँ ज़रुरत है। आगे पीछे देखो ज़रा। ..

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  3. sikhane ki jarurat kaha..roj kisi ek se nafrat ho hi jati hai..chalate chalate rahon me... :-)

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  4. आज चारों ओर नफ़रत का राज्य है...सब बिना कहे ही सीख रहे हैं...

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  5. लुट चुकी अस्मत
    मिट चुकी क़िस्मत
    हुस्न है फन्दा
    फंस गया बन्दा

    कहता ये ग़ाफ़िल
    ना भी बन क़ातिल
    फिर भी नफ़रत सीख ले!
    बहुत सुन्दर

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