जल रहीं जो याँ दिलों की बस्तियाँ
कब गिरीं इक साथ इतनी बिजलियाँ
बातियों में अब नहीं लज़्ज़त रही
अब बिगाड़ेंगी भला क्या आँधियाँ
अंजुमन भी किस तरह का अंजुमन
हों न गर तेरी मेरी सरगोशियाँ
जिस जगह भी मैं कभी आया गया
उस जगह कितनी हैं पहरेदारियाँ
गो के अब तक तो नहीं ऐसा हुआ
हैं बहुत ख़ामोश सी ख़ामोशियाँ
क्यूँ लुटा मैं दे रहीं इसका जवाब
किस अदा से आपकी बेताबियाँ
तब कहाँ थे आप मेरे ग़मग़ुसार
जब मुझे डंसती रहीं तन्हाइयाँ
निभ नहीं पाएँगी ग़ाफिल जी कभी
दरमियाँ अपने ये पर्देदारियाँ
-‘ग़ाफ़िल’
कब गिरीं इक साथ इतनी बिजलियाँ
बातियों में अब नहीं लज़्ज़त रही
अब बिगाड़ेंगी भला क्या आँधियाँ
अंजुमन भी किस तरह का अंजुमन
हों न गर तेरी मेरी सरगोशियाँ
जिस जगह भी मैं कभी आया गया
उस जगह कितनी हैं पहरेदारियाँ
गो के अब तक तो नहीं ऐसा हुआ
हैं बहुत ख़ामोश सी ख़ामोशियाँ
क्यूँ लुटा मैं दे रहीं इसका जवाब
किस अदा से आपकी बेताबियाँ
तब कहाँ थे आप मेरे ग़मग़ुसार
जब मुझे डंसती रहीं तन्हाइयाँ
निभ नहीं पाएँगी ग़ाफिल जी कभी
दरमियाँ अपने ये पर्देदारियाँ
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-09-2016) को "खूब फूलो और फलो बेटा नितिन!" (चर्चा अंक-2464)) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'