थे मेरे होंट आरिज़ था किसी का
दबी आवाज़ भी आई के ई का?
अभी आए हुए दो पल न बीते
भरोसा ख़ाक दूँ इक ज़िन्दगी का
है बाबत जिसके उस नाज़ुक जिगर को
बता दूँ क्या है ख़स्ता हाल जी का
गुनाहे यार भी क्या क्या गिनाऊँ
मैं शाइर हूँ मगर है शह उसी का
कभी रुख़सार तो ला पास मेरे
मज़ा पा जाएगा तश्नालबी का
तेरे लिखने का मानी कुछ न ग़ाफ़िल
न हो पाए वो गर बाइस ख़ुशी का
-‘ग़ाफ़िल’
दबी आवाज़ भी आई के ई का?
अभी आए हुए दो पल न बीते
भरोसा ख़ाक दूँ इक ज़िन्दगी का
है बाबत जिसके उस नाज़ुक जिगर को
बता दूँ क्या है ख़स्ता हाल जी का
गुनाहे यार भी क्या क्या गिनाऊँ
मैं शाइर हूँ मगर है शह उसी का
न मेरी मौत का ग़म कर ज़रा भी
किनारा था मैं बौराई नदी का
कभी रुख़सार तो ला पास मेरे
मज़ा पा जाएगा तश्नालबी का
तेरे लिखने का मानी कुछ न ग़ाफ़िल
न हो पाए वो गर बाइस ख़ुशी का
-‘ग़ाफ़िल’
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