Tuesday, October 03, 2017

तो वह भाँग अपनी भी खाई हुई है

न धेले की यारो कमाई हुई है
जो दौलत है अपनी वो पाई हुई है

किसी तर्ह भी अब न होगा बराबर
मेरे जेह्न की यूँ खुदाई हुई है

हक़ीक़त यही है के जब हम मिले हैं
ज़ुदाई तलक बस लड़ाई हुई है

मेरा शौक जलने का है इसलिए भी
के आतिश तेरी ही लगाई हुई है

कहाँ तुझसे पाना निज़ात अब है मुम्क़िन
तू नागन जो इक चोट खाई हुई है

गई मर्ज़ तब ही मरीज़ उठ गया जब
कुछ इस ही सिफ़त की दवाई हुई है

अगर तुझको ग़ाफ़िल गुरूर इश्‍क़ का है
तो वह भाँग अपनी भी खाई हुई है

-‘ग़ाफ़िल’

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