तुम्हारा दर मेरे आना जो सुब्हो शाम हो जाता
क़सम अल्लाह की यह एक उम्दा काम हो जाता
नशीला हूँ सरापा गो मगर इक बार मुझको तुम
अगर नज़रों छू देते छलकता जाम हो जाता
नहीं उल्फ़त अदावत ही सही तुम कुछ तो कर लेते
तुम्हारे नाम से जुड़कर मेरा भी नाम हो जाता
मेरे पास आ गए होते अगर तुम मिस्ले चारागर
हरारत थी मुहब्बत की ज़रा आराम हो जाता
निगाहे लुत्फ़ मेरे सिम्त होता और तुम ग़ाफ़िल
ज़रा सा मुस्कुरा देते मेरा इन्आम हो जाता
-‘ग़ाफ़िल’
क़सम अल्लाह की यह एक उम्दा काम हो जाता
नशीला हूँ सरापा गो मगर इक बार मुझको तुम
अगर नज़रों छू देते छलकता जाम हो जाता
नहीं उल्फ़त अदावत ही सही तुम कुछ तो कर लेते
तुम्हारे नाम से जुड़कर मेरा भी नाम हो जाता
मेरे पास आ गए होते अगर तुम मिस्ले चारागर
हरारत थी मुहब्बत की ज़रा आराम हो जाता
निगाहे लुत्फ़ मेरे सिम्त होता और तुम ग़ाफ़िल
ज़रा सा मुस्कुरा देते मेरा इन्आम हो जाता
-‘ग़ाफ़िल’
मेरे पास आ गए होते अगर तुम मिस्ले चारागर
ReplyDeleteहरारत थी मुहब्बत की ज़रा आराम हो जाता
...बहुत खूब!