आइए देखें के कैसे कैसे अफ़साने हुए
किस तरह कितने बशर अपनो से बेगाने हुए
मंज़िले उल्फ़त उन्हें हासिल नहीं हो पाई गो
हाँ मगर इतना हुआ कुछ अपने दीवाने हुए
हर कोई ले लुत्फ़ यूँ सबका मुक़द्दर तो नहीं
आतिशे उल्फ़त की बाबत कुछ ही परवाने हुए
शुक्र है, गोया नहीं उम्मीद थी हमको मगर
लग रहे दोज़ख़ में सारे चेहरे पहचाने हुए
अक्स उल्टा ही दिखाएँगे है ज़िद ये कैसी ज़िद
ग़ाफ़िल ऐसे जाने क्यूँ हर आईनाख़ाने हुए
-‘ग़ाफ़िल’
किस तरह कितने बशर अपनो से बेगाने हुए
मंज़िले उल्फ़त उन्हें हासिल नहीं हो पाई गो
हाँ मगर इतना हुआ कुछ अपने दीवाने हुए
हर कोई ले लुत्फ़ यूँ सबका मुक़द्दर तो नहीं
आतिशे उल्फ़त की बाबत कुछ ही परवाने हुए
शुक्र है, गोया नहीं उम्मीद थी हमको मगर
लग रहे दोज़ख़ में सारे चेहरे पहचाने हुए
अक्स उल्टा ही दिखाएँगे है ज़िद ये कैसी ज़िद
ग़ाफ़िल ऐसे जाने क्यूँ हर आईनाख़ाने हुए
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-01-2019) को "कांग्रेस के इम्तिहान का साल" (चर्चा अंक-3208) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
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