Wednesday, May 08, 2019

क्या हुआ जो आदमी जैसा हुआ

जबसे रू-ए-हुस्न पे पर्दा हुआ
पूछिए मत आशिक़ी का क्या हुआ

मैं बयाँ करता भी कितना दर्दे दिल
शब हुई पूरी चलो अच्छा हुआ

और भी जबके हैं रिश्तेदारियाँ
क्यूँ फ़क़त अपनी का ही चर्चा हुआ

कल हवा आई थी जानिब से तेरी
आज भी है जी मेरा बहका हुआ

अपने कुछ हो जाएँ होती है ख़ुशी
ठीक है जो बेवफ़ा अपना हुआ

शह्र में इतने रफ़ूगर हैं तो फिर
दिल तेरा है क्यूँ फटा टूटा हुआ

कितने दर्या ख़ुद में लेता है उतार
क्या समन्दर सा कोई प्यासा हुआ

आदमी तो हो नहीं पाया तू फिर
क्या हुआ जो आदमी जैसा हुआ

तेरे हिस्से में हूँ मैं पर जाने क्यूँ
मेरे हिस्से मेरा ही साया हुआ

हैं तेरे ही दम पर एहसासों के फूल
फ़ख़्र कर तू अश्कों का क़तरा हुआ

और ग़ाफ़िल की कहानी कुछ नहीं
इक सिवा इसके के है खोया हुआ

-‘ग़ाफ़िल’

1 comment:

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