Sunday, August 11, 2019

हाँ रहा मैं भी और आईना भी रहा

मैं तो था ही मेरा हौसिला भी रहा
ग़म के सौदे में अपने ख़ुदा भी रहा

एक था वक़्त ऐसा के मैं ख़ुद मेरी
जब नज़र में भी था गुमशुदा भी रहा

किर्चें सपनों की मेरे उड़ीं ता’फ़लक़
हाँ रहा मैं भी और आईना भी रहा

मेरी बर्बादी में मेरी जाने ग़ज़ल
हाथ जो भी थे उनमें तेरा भी रहा

जीत अपनी मुक़म्मल हुई यूँ के मैं
दौड़ता तो रहा हारता भी रहा

मह के मानिन्द ही मेरा महबूब है
कुछ नुमा भी रहा कुछ निहा भी रहा

बाबते हिज्र ग़ाफ़िल जी कुहराम क्यूँ
अब तसव्वुर में वो जबके आ भी रहा

-‘ग़ाफ़िल’

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