हाँ लिया और सहरो शाम लिया
पर न बोलूँगा मैंने जाम लिया
जो के आता था मेरे ख़्वाबों में रोज़
ऐसे वो शायद इंतकाम लिया
लेना था जी से जेह्न से लेकिन
क़त्ल में मेरे फिर वो काम लिया
शायद इससे ही है ख़फ़ा रब जो
मैंने नाम उसका सुब्हो शाम लिया
ग़ाफ़िल उल्फ़त का रोग तुझको था और
लुत्फ़ उसने भी बेलगाम लिया
-‘ग़ाफ़िल’
वाह
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