बताएँ क्यूँ के हमको अब तलक क्या क्या नहीं आया
हाँ ये है सामने वाले को भरमाना नहीं आया
हाँ ये है सामने वाले को भरमाना नहीं आया
जो कहना था न कह पाए हों शायद हम सलीके से
है मुम्क़िन यह भी शायद उनको ही सुनना नहीं आया
अदा क़ातिल है ये भी उनके दर जाओ न तो उनका
बड़ी मासूमियत से बोलना अच्छा नहीं आया!!
कुछ और आसान हो जाता हमारा मरना उल्फ़त में
सुना जाता जो नामाबर के ख़त उनका नहीं आया
यक़ीनन लुत्फ़ आएगा जो चाहो तज़्रिबा कर लो
कोई ग़ाफ़िल कहे जब उनका संदेशा नहीं आया
मेरे ब्लॉग ग़ज़लयात्रा पर आपका स्वागत है। इसमें आप भी शामिल हैं-
ReplyDeletehttp://ghazalyatra.blogspot.com/2020/12/blog-post.html?m=1
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ग़ज़लों के आईने में किसान
सादर,
- डॉ. वर्षा सिंह
शुक्रिया डॉक्टर साहिबा!
Deleteजो कहना था न कह पाए हों शायद हम सलीके से
ReplyDeleteहै मुम्क़िन यह भी शायद उनको ही सुनना नहीं आया
बेहतरीन...
लाजवाब ग़ज़ल...
🌹🙏🌹
शुक्रिया मिस
Deleteयकीनन लुत्फ उठाया । आभार ।
ReplyDeleteअमृता जी धन्यवाद
Deleteवाह
ReplyDeleteजोशी जी नमन् आभार
Deleteवाह , बहुत खूब ग़ज़ल । बहुत अर्से बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर ।
ReplyDeleteवाह ग़ाफिल साहब की ग़ज़ल ...बहुत खूब ही कहा कि ---कुछ और आसान हो जाता हमारा मरना उल्फ़त में
ReplyDeleteसुना जाता जो नामाबर के ख़त उनका नहीं आया...लाजवाब