ये न कह तू के क्या है उल्फ़त में
लुत्फ़ आता है मुझको इस लत में
जी चुराने को हैं हज़ारों तैयार
अब तो आए कोई हिफ़ाज़त में
कौन है शख़्स वह अगर तू नहीं
जिसके बाइस ये जी है दिक्कत में
कर हिक़ारत के बदले इश्क़ कुबूल
लुत्फ़ जो है तुझे तिज़ारत में
ग़ाफ़िल इक रोज़ लाएगा सैलाब
हाँ वो जो छेद है तेरी छत में
-‘ग़ाफ़िल’
बेहतरीन ग़ज़ल।
ReplyDeleteधन्यवाद शास्त्री जी नमन्
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