आपकी ख़्वाहिश है तो गोया फ़ना हो जाऊँगा
ऐसे भी पर देखिएगा आपका हो जाऊँगा
आपने ठुकरा दिया इज़्हारे उल्फ़त मेरा गर
क्या बताऊँ आपको मैं फिर के क्या हो जाऊँगा
मंज़िले उल्फ़त की जानिब मेरे हमदम आपके
पावँ तो आगे बढ़ें मैं रास्ता हो जाऊँगा
आपकी हो जाए मेरी सू निगाहे लुत्फ़ भर
देख लेना फ़र्श से मैं अर्श का हो जाऊँगा
ग़ाफ़िल और आशिक़ मिजाज़ ऐसा है गो मुश्किल मगर
याद करिए आप! था मैंने कहा हो जाऊँगा
-‘ग़ाफ़िल’
बढ़िया ग़ज़ल
ReplyDeleteधन्यवाद जनाब शास्त्री जी
Deleteधन्यवाद महोदय
ReplyDeleteसुन्दर गजल
ReplyDeleteधन्यवाद महोदय
Deleteबहुत खूब , खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीया
Deleteबहुत उम्दा ग़ज़ल।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
Deleteलाजवाब गजल
ReplyDeleteवाह!!!
शुक्रिया महोदया
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